Friday, February 22, 2013


समकालीन विमर्श का एक महत्वपूर्ण पोर्टल

पढ़ें..
दो नाक वाले लोग-- हरिशंकर परसाई
बात मैं उन सज्जन की कर रहा था जो मेरे सामने बैठे थे और लड़की की शादी पुराने ठाठ से ही करना चाहते थे। पहले वे रईस थे - याने मध्यम हैसियत के रईस। अब गरीब थे। बिगड़ा रईस और बिगड़ा घोड़ा एक तरह के होते हैं - दोनों बौखला जाते हैं। किससे उधार लेकर खा जाएँ, ठिकाना नहीं। उधर बिगड़ा घोड़ा किसे कुचल दे, ठिकाना नहीं। आदमी को बिगड़े रईस और बिगड़े घोड़े, दोनों से दूर रहना चाहिए। मैं भरसक कोशिश करता हूँ। मैं तो मस्ती से डोलते आते साँड़ को देखकर भी सड़क के किनारे की इमारत के बरामदे में चढ़ जाता हूँ - बड़े भाई साहब आ रहे हैं। इनका आदर करना चाहिए।... पूरा पढ़ें....

Wednesday, February 20, 2013

गंगा और देश की नदियां--प्रभाकर चौबे

www.vikalpvimarsh.in में...
गंगा और देश की नदियां--प्रभाकर चौबे
गंगा के जल को प्रदूषित किसने किया। गंगाजल तो निर्मल था, सालों बंद बोतल में रखे रहने पर भी गंदा नहीं होता था। अब घोर आस्थावान, साधू, महंत, मठाधीश भी ऐसा कह रहे हैं कि गंगा का पानी अब स्नान के लायक नहीं रहा। गंगाजल को मुंह में रखने की इच्छा नहीं होती। इस स्वच्छ जल को गंदा किसने किया। आम जनता ने तो किया नहीं। सबको पता है, कि गंगाजल को गंगा किनारे बसे बड़े-बड़े शहरों में स्थापित उद्योगों ने प्रदूषित किया है। ...पूरा पढ़ें...

गंगा और देश की नदियां--प्रभाकर चौबे


www.vikalpvimarsh.in
गंगा और देश की नदियां--प्रभाकर चौबे
गंगा के जल को प्रदूषित किसने किया। गंगाजल तो निर्मल था, सालों बंद बोतल में रखे रहने पर भी गंदा नहीं होता था। अब घोर आस्थावान, साधू, महंत, मठाधीश भी ऐसा कह रहे हैं कि गंगा का पानी अब स्नान के लायक नहीं रहा। गंगाजल को मुंह में रखने की इच्छा नहीं होती। इस स्वच्छ जल को गंदा किसने किया। आम जनता ने तो किया नहीं। सबको पता है, कि गंगाजल को गंगा किनारे बसे बड़े-बड़े शहरों में स्थापित उद्योगों ने प्रदूषित किया है।.....पढ़ें...
www.vikalpvimarsh.in

Saturday, February 16, 2013

लखनऊ में वयस्कों का नाटक


www.vikalpvimarsh.in
लखनऊ ने वयस्कों के नाटक को अपनाया
ओके टाटा बाई बाई नाम के नाटक में जैसे डायलॉग हैं, वे अगर बंबईया फिल्मों में होते, तो सिर्फ फर्स्ट क्लास के दर्शकों से सीटी और हूटिंग का सामना करना पड़ता. लेकिन नजाकत और नफासत की परंपरा वाले लखनऊ के संजीदा दर्शकों ने बारीकी से इस ड्रामे को समझने की कोशिश की. इप्टा के रंगकर्मी राकेश कहते हैं कि दर्शक समझदार हो रहा है और नाटक इसमें अहम भूमिका निभा रहे हैं, "रंगमंच हमेशा से परिपक्वता का परिचय देता है.".............पढ़ें...www.vikalpvimarsh.in

यथास्थितिवाद से मुठभेड़--प्रभाकर चौबे का लेख

www.vikalpvimarsh.in
यथास्थितिवाद से मुठभेड़--प्रभाकर चौबे
लोकतंत्र का मतलब नियमित चुनाव और जनता के अधिकार का मतलब चुनाव में वोट देने तक सीमित कर दिया गया। और जनता ने वोट देने तथा सरकार बनाने के प्रति एक तरह से उदासीनता ओढ़ ली। देश में हर निर्माण कार्य में भ्रष्टाचार घुसा और हर काम में कमीशन की पैठ मजबूत होती गई। इसका नतीजा यह हुआ कि मेहनतकश तो तकलीफ में रहे आए लेकिन बिचौलियों की खुशहाली बढ़ी।
पूरा लेख पढ़ें...