25मई: भारतीय जन
नाट्य संघ ( इप्टा) का स्थापना दिवस
LONG LIVE IPTA, The Cultural Revolution
आज भारतीय जन नाट्य
संघ यानि इप्टा का स्थापना दिवस है । औपचारिक रूप से आज ही के दिन 25 मई 1943 को औपनीवेशीकरण,
फासीवाद और साम्राज्यवाद के खिलाफ स्थापित बंबई (आज की मुंबई) में इप्टा की स्थापना
हुई थी । उल्लेखनीय है कि इप्टा की स्थापना के स्वर्ण जयंती के अवसर पर भारत सरकार ने डाक टिकट भी जारी
किया था । आज की पीढ़ी को यह जानकर सुखद आश्चर्य
होगा कि भारतीय जन नाट्य संघ का नाम मशहूर वैज्ञानिक होमी जहांगीर भाभा ने रखा था । इप्टा ने सन 1942- 43 के दौर में बंगाल के अकाल
में अपनी जबरदस्त भूमिका निभाई।
आज देश भर में इप्टा की लगभग 600 इकाइयां कार्यरत
हैं और इनमें से अनेक स्थानो पर इप्टा का स्थापना दिवस मनाया जाता है । छत्तीसगढ़ की
भिलाई, रायगढ़ डोंगरगढ़ की इकाइयों में भी स्थापना दिवस मनाए जाने की खबरें
हैं जो सुखद है मगर राजधानी रायपुर में खामोशी होना दुखद है । राजधानी के आयोजन का
पूरे प्रदेश में असर होता है ।
इप्टा शुरूवाती दौर से ही वैचारिक रूप
से भारत के वामपंथी आंदोलन से से जुड़ गई ।
भारतीय वामपंथी आंदोलन में सांस्कृतिक आंदोलन का हिस्सा बनी इप्टा से शुरुवाती दौर
से ही रंगमंच और फिल्मों की अनेक नामी गिरामी हस्तियां जुड़ीं । जिनमें से कुछ प्रमुख
हैं- ए. के. हंगल, ख्वाजा
अहमद अब्बास, राजेन्द्र सिंह
बेदी, कृष्ण चंदर,
पं. रविशंकर, कैफी आज़मी, हबीब तनवीर, सलिल चौधरी,शैलेन्द्र ,साहिर लुधियानवी,मज़ाज, मख्दूम, बलराज साहनी,
भीष्म साहनी, एम.एस. सथ्यू, शबाना आजमी, फारूख शेख, राजेन्द्र रघुवंशी, जैसे कई नामचीन कलाकार इप्टा से जुड़े रहे । एक समय फिल्म
जगत में इप्या से जुड़े कलाकारों का काफी मान सम्मान हुआ करता था । धीरे धीरे पिल्मों
के व्यवसायीकरण और फिर बाजारीकरण की अंधी दौड़ के चलते वैचारिकता एवं प्रतिबद्धता कहीं
हाशिए पर जाती गई। इसमें इप्टा के आंदोलन का धीमापन भी उतना ही दोषी रहा।
आजादी के एक लम्बे
समय के पश्चात जब 7 वें 8वें दशक में जनआंदोलन अपने पूरे शबाब पर था, इप्टा ने फिर अहम भूमिका निभाई और देश में जनसरोकारों
के प्रति अपनी सांस्कृतिक भूमिका का पूरी जिम्मेदारी से निर्वहन करते हुए देश में अपनी
साख जमाई । मगर नौबें दशक की शुरुवात से काफी परिवर्तन महसूस होने लगे । विश्व में
साम्यवादी आंदोलनो की गिरावट,एनजीओ के उभार के साथ ही तेजी से एकध्रुवीय उदारीकरण एवं वैश्वीकरण का सीधा असर इप्टा पर भी
दिखाई देने लगा । जन सरोकारों पर काम करने वाली इप्टा में भी जन की जगह धन के सरोकार
ने कई लोगों को विचलित किया । ऐसे में इप्टा से अलग होकर अनेक नाट्य संस्थाएं उभरीं
। इनमें से कुछ इप्टा के सिद्धांतों पर चलती रहीं मगर अधिकांश नए ज़माने और बाजारवाद
के प्रभाव से खुद को बचा नहीं पाई और वैश्वीकरण के रंग ढंग में घुलमिल गईं ।
इवेन्ट मैनेजमैंट
और महोत्सवों के जमाने में जनसरोकारों के प्रति कटिबद्धता वाकई आसान नहीं है मगर इस
कठिन दौर में देश के कई हिस्सों में प्रतिबद्ध व जुझारू रंगकर्मियों ने इप्टा की अलख
जगाए रखी और इसके जनपक्ष को कायम रखने में अपनी अहम भूमिका निभाही । भी कम ही सही मगर
समर्पित और जुझारू साथियों की सक्रिय भागीदारी और मजबूत इरादों के बल पर इप्टा लगातार संघर्ष व कठिन
दौर से गुजर जूझकर भी अपनी उपस्थिति कायम रखने में कामयाब रही है । इसके लिए
कामरेड जितेन्द्र रघुवंशी, जिनकी
विगत दिनो बड़ी ही दुर्भाग्यजनक स्थिति में उनकी मृत्यु हो गई , के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता
आज कई स्थानो पर इप्टा का स्थापना दिवस मनाया जा
रहा है । हाल के वर्षों में एक बार फिर इप्टा सक्रिय होकर उबर रही है और कई स्थानो
पर युवा वर्ग इप्टा से आकर्षित हो रहा है । यह संतोष की बात है .। आज जब नवपूंजीवाद,
नवसा्राज्यवाद और वैश्वीकरण रोज नए
रूप में सामने आ रहे हैं , सांप्रदायिकता पूरे विश्व में नंगा नाच कर रही है और पूंजीवादी
ताकतें पूरे विश्व को युद्ध और अराजकता के भंवर में फंसाकर अपना उल्लू सीधा करना चाहते
हैं , जन सरोकारों से जुड़ी
तमाम संस्थाओं को और सक्रिय व एकजुट होकर संघर्ष करने की आवश्यकता है । ऐसे दौर में
इप्टा की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है ।
हम आशा करते हैं कि
विपरीत परिस्थितियों और संघर्ष के इस दौर में भी इप्टा अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता कायम
रखते हुए जनसरोकार के प्रति समर्पित रहेगी और लगातार वैज्ञानिक व सांस्कृतिक सोच विकसित
करती रहेगी ।
(जीवेश प्रभाकर)