सरकार की आहट
जीवेश प्रभाकर
बस एक रात का फासला
है और कल सारे अनुमान, सारे सर्वेक्षण और सट्टे बाजों के भी
आंकलन का परिणाम सामने होगा । इस बार मतदाताओं ने
अपनेर् कत्तव्य निर्वाहन में काफी उत्साह दिखाया है । देश के
अन्य 5 रायों में चुनाव के नतीजे आयेंगे । मगर ज्यादा
उत्सुकता व इंतजार अपने अपने प्रदेश को लेकर ही होता है । निश्चित रूप से इस चुनाव में
मुकाबला बहुत ही संघर्षपूर्ण व कांटे का है । तमाम आंकलन व अनुमान लगाए जा चुके
हैं और अब वास्तविक नतीजे की घड़ी आ चुकी है । धीमे धीमे करीब आने लगी है सरकार की
आहट।
ये रात सबके लिये
बड़ी तनावग्रस्त है । वो जो वातानुकुलित कमरों में चैन की नींद सोते हैं, इस रात को वे नहीं सो पाते । जो नतीजों के इंतजार में जागते हैं वो तो
इससे निजात नहीं पा सक ते, मगर कई ऐसे हैं जिनकी आगे की नींद
इन परिणामों पर ही निर्भर करती है । ये वे लोग होते हैं जो सरकार पोषित होते हैं ।
इनका सब कुछ इन परिणामों पर ही निर्भर होता है । ये आज भी सत्ता से लाभ उठा रहे
हैं और आगे भी उठाने की जुगत में लगे रहेंगे । इन लोगों के लिये भी आज की रात कत्ल
की रात की तरह होती है । ये वे होते हैं जो चुनाव के दौरान अपनी कोई राय नहीं देते
बल्कि दूसरों से राय जानने में लगे रहते हैं । इस दौरान ये बड़े समावेशी , मिलनसार और मृदुभाषी हो जाते हैं ।
कल आने वाले
परिणामों से जाने कितनो के गणित गलत हो जायेंगे, गड़बड़ा
जायेंगे, तो जाने कितनो की केमिस्ट्री फिट हो जायेगी । कितने
ही इतिहास में चले जायेंगे तो कितनों के नए अध्याय शुरू होंगे । बस एक रात और सारे
समीकरण सामने होंगे । इन तमाम तनावों और उहापोह के बीच चैन से सोता मिलेगा वही
जिसे पूरे चुनाव के दौरान ईश्वर की तरह चढ़ावा चढ़ाया जाता रहा और जो इन सब चढ़ावों
को, सबके चढ़ावों को खुले दिल से चढ़ाता हुआ अपनी मर्जी
इ.वी.एम. में दर्ज करा आया है । आज की रात वो बड़े आराम से सो रहा है क्योंकि कल के
जश्न में उसे ही अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है । यह ईश्वर आज की रात बड़े आराम
से खुर्राटे भर रहा होगा ।
वो फूल वाला,
मिठाईवाला, पटाखे वाला, बैंडवाला
.. सब तैयार हैं । उन्हें तो बस बजाना है, जीत किसी की भी हो
। ये पूरी तरह नई सरकार की तैयारी में अपना योगदान देने बेचैन हैं । ये हर चुनीव
में जश्न के सामान होते हैं । जीतने का जश्न खत्म होते ही विजयी प्रत्याशी फर्श से
अर्श तक पहुंच जाता है, अगले चुनाव के आते आते विजेताओं की
संपत्ति तो 5-10 गुना बढ़ जाती है मगर ये जो इनकी सवारी निकालते
हैं कहीं और नीचे धंसते चले जाते हैं । जाने कितने विजय जूलुसों की शान और योगदान
के बावजूद आज भी ये वहीं है । उम्मीद और उत्साह से भरी जनता भी अपने कंघों पर इन
विजेताओं को सत्ता की दहलीज पर छोड़ती है जहाँ वे भीतर घुसकर जो किवाड़ बंद करते हैं
तो फिर ये झरोखों पर ही दर्शन देते हैं । बाद में हम आप इनके दर्शन तक को तरसते
रहते हैं। सुरक्षा के नाम पर हथियारबंद कमांडो से ये अपने आप को इतना सुरक्षित कर
लेते हैं कि आमजन इनकी छाया तक भी नहीं पहुंच पाता । कल तक जो आपके दरवाजे पर हाथ जोड़े खड़े थे ,कल शाम के बाद इनके सुरक्षाकर्मी अपने हाथो से आपको धकियाते मिलेंगे ।
कल परिणाम आने के
बाद सभी आपको यही कहते मिलेंगे, ''देखा, मैंने तो पहले ही कहा था ... ।''
आप ये सुनने के लिये तैयार रहें ।
अरे मीडिया को तो भूल ही
गए ...सबसे वेसब्र तो यही रहता है । बेसब्र इतना कि चुनाव नतीजों के पहले कागजी
सरकार बनवा देते हैं और उस पर बहस भी करवा लेते है । ये सब ओर से फायदे में होता है । सरकार किसी की
बने, जीते कोई भी जश्न तो इसे ही मनाना है । चित भी मेरी पट
भी मेरी और अंटा भी जेब में । कल बधाइयों, धन्यवाद से भरे विज्ञापनों के बीच अखबारों में कोई जगह नहीं होगी
चुनाव आयोग इस बार चुनाव नतीजों के बाद भी प्रत्याशी
के खर्च पर निगाह रखेगा । जश्न का खर्च भी
प्रत्याशी के खाते में डाला जाएगा । ये क्या बात हुई । चुनाव खतम पैसा हजम । क्या
हर प्रत्याशी अपने निर्धारति राशि में से जश्न के लिए पैसा बचाकर रखे । अरे भई
क्या हर प्रत्याशी जीत रहा है ? चुनाव आयोग भी बेतुके फरमानो
से अपनी छवि खराब करता रहता है । ये बेलगाम नौकरशाही का एक हास्यासपद नमूना है । कानून तो चुनाव में हुए खर्च के लिए है क्या ....
आपसे नई सरकार के गठन
के बाद ही बात होगी। तो मिलते हैं नतीजों के बाद.. ।
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