कई दिनो से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की डिग्री को लेकर पूरे देश में
बवाल मचा हुआ है । यह निहायत ही शर्म की बात है कि देश के प्रधानमंत्री जैसे
गरिमामयी पद पर आसीन व्यक्ति की डिग्री को लेकर देशभर में हल्ला मचा हुआ है और खुद
प्रधानमंत्री मौन हैं ।
वाचाल
माने जाने वाले नरेन्द्र मोदी की इस मसले पर नीम खामोशी सचमुच आश्चर्यजनक है । इस
तरह संदेहों के साथ साथ अफवाहों को जन्म
देती है । पूरे विश्व में संभवतः यह अपने तरह का पहला मामला है जबकि एक देश के
प्रधानमंत्री पर इस तरह दोषारोपण हो रहा हो ।
ऐसा नहीं है कि प्रधानमंत्री
या किसी भी नेता को डिग्रीधारी ही होना चाहिए । और न ही देश की जनता प्रधानमंत्री
क्या किसी भी नेता को डिग्री के आधार पर चुनती है । शिक्षित होने के लिए और जनप्रतिनिधि होने के
लिए किसी डिग्री की आवश्यकता नहीं होती मगर बात ईमानदारी व सच्चाई की है । सार्वजनिक जीवन में नैतिक रूप से सच्चाई व
ईमानदारी बहुत आवश्यक है । पहले भी कई
राजनेता बहुत बड़ी डिग्रीधारी नहीं हुए मगर उनमें नैतिक ईमानदारी थी । पूरे देश
में कोई प्रधानमंत्री से डिग्री नहीं मागता मगर आप लगातार झूठ व फरेब का सहारा
लेकर तथ्यों को गलत पेश करेंगे तो लोगों में गलत संदेश जाता है साथ साथ
विश्वासनीयता में भी कमी आती है ।
हमेशा आक्रामक रहने की कोशिश
करने वाली भाजपा पूरी तरह बचाव की मुद्रा में है । यह संदेहों को और पुख्ता करता
है । यह अजीब बात है कि प्रधानमंत्री, जो पहले 10 वर्ष से भी ज्यादा समय तक गुजरात
के मुख्यमंत्री रह चुके हैं , अब तक अपनी शैक्षणिक योग्यता का ठोस , विशवसनीय व
प्रमाणित घोषणा नहीं कर सके हैं ।
सबसे ज्यादा
जिम्मेदारी चुनाव आयोग की बनती है जो अब तक खामोश रहकर तमाशा देख रहा है । जरा जरा
सी बात पर नियम कायदे की धौंस दिखाने वाला चुनाव आयोग आखिर स्वयं आगे आकर तत्यों
को साफ क्यों नहीं कर रहा है ? यदि
झूठे तत्य हैं तो नियमानुसार कार्यवाही क्यों नहीं कर रहा है ?
एक साधारण सी नौकरी के लिए भी
आवेदन पत्र के साथ ही तमाम योग्यताओं के प्रमाण पत्रों की छाया प्रति लगानी
अमिवार्य होता है मगर यह अजब बात है कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के सबसे बड़े
चुनाव में प्रतिभागी उम्मीदवार को नामांकन के समय शैक्षणिक योग्ता के कुछ भी
प्रमाण प्रस्तुत नहीं करना पड़ता । ये हमारे चुनाव की सबसे बड़ी कमजोरी है । इसी
के चलते सिर्फ प्रधानमंत्री ही नहीं उनकी कैबीनेट मंत्री स्मृति इरानी एवं देश की कई
पार्टियों के अनेक उम्मीदवारों के प्रमाण पतत्रों पर फर्जी होने के आरोप लगते रहते
हैं । और सबसे बड़ा आश्यर्य इस बात का भी है कि विगत 15 वर्षों से राज्. व अब देश
के शीर्ष पद पर आसीन व्यक्ति द्वारा लगातार संदेहास्पद जानकारी दिए जाने के बावजूद
चुनाव आयोग कोई भी कार्यवाही नहीं कर सका है ।
होना तो ये चाहिए कि स्वयं प्रधानमंत्री को आगे
आकर सभी आरोपों का जवाब देकर तमाम संदेहों
को दूर कर देना चाहिए । रेडियो पर मन की बात कहने की चाह है तो जनता के मन की शंका
इसी कार्.क्रम में दूर कर देना चाहिए । मगर
आज किसी भी नैतिकता की उम्मीद
बेमानी हो चली है अतः जरूरत इस बात की हो गई है कि चुनाव आयोग नामांकन के समय ही
प्रत्येक उम्मीदवार को स्वघोषित शैक्षणिक योग्यता सहित तमाम प्रमाण पत्रों को
सत्यापित कर प्रस्तुत करने का सख्त नियम बनाए ।
प्रधान मंत्री जी की डिग्री तो खैर सामने आ ही गयी ... पर में इस बात से सहमत नहीं की मोदी जी को सामने आ के कुछ बोलना चाहिए ... वो भी क्योंकि केजरीवाल पूछ रहे है ... ऐसे तो सौ करोर लोग कुछ न कुछ रोज़ पूछेंगे .... किस किसका जवाब दें वो ...
ReplyDelete