गोवर्धन पर्वत-
बारिश मे तान लिया
अपने सर पर छाता
कड़कड़ाती ठंड मे
बचाता रहा अपनी चमड़ी
और गर्मियों मे
अपने घर पर ही लगा लिया कूलर ।
बस इतना ही करता रहा
मौसम दर मौसम साल दर साल साल
और सोच लिया सारी दुनिया चैन से है ।
मैं नही बेघर हुआ बाढ़ मे
न अकडा कड़कड़ाती ठंड मे
और झुलसा भी नही
गर्म लू के थपेड़ों मे ।
मैं रहा सुरक्षित और
अंशतः सफल रहा
बस अपना परिवार
ऊपर उठा पाने मे,
मैंने नही उठाया कभी गोवर्धन पर्वत ।
अपने सर पर छाता
कड़कड़ाती ठंड मे
बचाता रहा अपनी चमड़ी
और गर्मियों मे
अपने घर पर ही लगा लिया कूलर ।
बस इतना ही करता रहा
मौसम दर मौसम साल दर साल साल
और सोच लिया सारी दुनिया चैन से है ।
मैं नही बेघर हुआ बाढ़ मे
न अकडा कड़कड़ाती ठंड मे
और झुलसा भी नही
गर्म लू के थपेड़ों मे ।
मैं रहा सुरक्षित और
अंशतः सफल रहा
बस अपना परिवार
ऊपर उठा पाने मे,
मैंने नही उठाया कभी गोवर्धन पर्वत ।
जीवेश प्रभाकर
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