संगमनकार में – प्रियंवद का “आइनाघर ”
आइनाघर-4 में “बुत हमको कहें कांफिर ”
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हमने अपनी वेबसाइट में वरिष्ठ साहित्यकार व अकार के संपादक प्रियंवद का कॉलम “आइनाघर ” शुरु किया है जो पाक्षिक है और प्रतिमाह के पहले व तीसरे हफ्ते में वेबसाइट पर प्रकाशित किया जाता है।
आइनाघर-4 में
इस बार आइनाघर-4 में “बुत हमको कहें कांफिर ”
गंगा- जमुनी संस्कृति व सामाजिक ताने बाने पर लिखी यह रचना आज के माहौल में अत्यंत ही प्रासंगिक है ।
जीवेश प्रभाकर
संपादक- संगमनकार
बुत हमको कहें काफ़िर....... :प्रियंवद
.......' शाखा ' की ही एक और घटना हुयी। राजेश्वर कृष्णन हमारा दक्षिण भारतीय मित्र है।उसकी माँ निष्ठावान हिन्दू थी । 'शाखा' में तय हुआ कि शरद पूर्णिमा के अगले दिन सबको चांदनी में रखी खीर खिलाई जाएगी। राजेश्वर ने अपनी माँ को बताया कि वह शाम को खीर खाने शाखा जाएगा ।
'वहाँ गए तो टाँगें तोड़ दूँगी' माँ ने कहा था ।
वह बताता है मैंने माँ से बहस की कि क्या बुराई है ? प्रसाद की खीर है । प्रसाद तो घर में, मन्दिरों में सब जगह खाते हैं । फिर वहाँ खेल भी होगें । पर उसका एक ही उत्तर था 'नहीं जाना है।'
राजेश्वर की पत्नी अंग्रेज़ है । बहुत साल लखनऊ में रही है । आज राजेश्वर को अपनी माँ की बात समझ में आती है । खासतौर से तब जब उसकी पत्नी लखनऊ की सड़कों पर निकलती है । बाद में बच्चों के बड़े होने पर वह इंग्लैंड चला गया । उसके बच्चे शक्ल से अंग्रेज लगते है । बहुत अच्छी हिन्दी बोलते हैं । बेटी का नाम रोहिणी है । वे भी साल में एक बार लखनऊ आते हैं । पत्नी आती रहती है । शायद वे सब न डरते हों, पर उनके साथ होने पर राजेश्वर डरता है । ट्रेन में, सड़कों पर, भीड़ में ,मेलों में, जुलूस में, उसी तरह जिस तरह तमिलों द्वारा राजीव गाँधी की हत्या के बाद उसे सलाह दी गयी थी की कि घर के बाहर 'डॉ. कृष्णन' की नेम प्लेट हटा ले, क्योंकि 1984 में इंदरा गाँधी की हत्या के बाद सिक्खों के साथ जो हुआ, सबने देखा था। उसने भी कानपुर में देखा था । तब कानपुर में 72 सिक्खों की हत्या हुई थी और दिल्ली के बाद सिक्खों की हत्या करने के मामले में दूसरा शहर कानपुर था। वह उसी तरह डरता है जिस तरह बाबरी मस्जिद गिरने के बाद डरा था, और जो मुसलमानों के साथ हुआ था और जिसे उसने देखा था । वह उसी तरह डरता है, जिस तरह उड़ीसा में ग्राहम स्टेन्स को जलाने और चर्च फूँके जाने के बाद डरा था । 'नस्ल की श्रेष्ठता', 'धर्म की उच्चता' 'विशिष्ट होने का बोध' 'अन्य से घृणा' 'सांस्कृतिक गौरव' 'राष्ट्रवादी उन्माद', धर्म-शक्ति का प्रदर्शन कर्मकांड सब उसे डराते हैं, किसी भी धर्म, देश, जाति के हों । .....
(प्रियंवद)
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गंगा- जमुनी संस्कृति व सामाजिक ताने बाने पर लिखी यह रचना आज के माहौल में अत्यंत ही प्रासंगिक है ।
जीवेश प्रभाकर
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बुत हमको कहें काफ़िर....... :प्रियंवद
.......' शाखा ' की ही एक और घटना हुयी। राजेश्वर कृष्णन हमारा दक्षिण भारतीय मित्र है।उसकी माँ निष्ठावान हिन्दू थी । 'शाखा' में तय हुआ कि शरद पूर्णिमा के अगले दिन सबको चांदनी में रखी खीर खिलाई जाएगी। राजेश्वर ने अपनी माँ को बताया कि वह शाम को खीर खाने शाखा जाएगा ।
'वहाँ गए तो टाँगें तोड़ दूँगी' माँ ने कहा था ।
वह बताता है मैंने माँ से बहस की कि क्या बुराई है ? प्रसाद की खीर है । प्रसाद तो घर में, मन्दिरों में सब जगह खाते हैं । फिर वहाँ खेल भी होगें । पर उसका एक ही उत्तर था 'नहीं जाना है।'
राजेश्वर की पत्नी अंग्रेज़ है । बहुत साल लखनऊ में रही है । आज राजेश्वर को अपनी माँ की बात समझ में आती है । खासतौर से तब जब उसकी पत्नी लखनऊ की सड़कों पर निकलती है । बाद में बच्चों के बड़े होने पर वह इंग्लैंड चला गया । उसके बच्चे शक्ल से अंग्रेज लगते है । बहुत अच्छी हिन्दी बोलते हैं । बेटी का नाम रोहिणी है । वे भी साल में एक बार लखनऊ आते हैं । पत्नी आती रहती है । शायद वे सब न डरते हों, पर उनके साथ होने पर राजेश्वर डरता है । ट्रेन में, सड़कों पर, भीड़ में ,मेलों में, जुलूस में, उसी तरह जिस तरह तमिलों द्वारा राजीव गाँधी की हत्या के बाद उसे सलाह दी गयी थी की कि घर के बाहर 'डॉ. कृष्णन' की नेम प्लेट हटा ले, क्योंकि 1984 में इंदरा गाँधी की हत्या के बाद सिक्खों के साथ जो हुआ, सबने देखा था। उसने भी कानपुर में देखा था । तब कानपुर में 72 सिक्खों की हत्या हुई थी और दिल्ली के बाद सिक्खों की हत्या करने के मामले में दूसरा शहर कानपुर था। वह उसी तरह डरता है जिस तरह बाबरी मस्जिद गिरने के बाद डरा था, और जो मुसलमानों के साथ हुआ था और जिसे उसने देखा था । वह उसी तरह डरता है, जिस तरह उड़ीसा में ग्राहम स्टेन्स को जलाने और चर्च फूँके जाने के बाद डरा था । 'नस्ल की श्रेष्ठता', 'धर्म की उच्चता' 'विशिष्ट होने का बोध' 'अन्य से घृणा' 'सांस्कृतिक गौरव' 'राष्ट्रवादी उन्माद', धर्म-शक्ति का प्रदर्शन कर्मकांड सब उसे डराते हैं, किसी भी धर्म, देश, जाति के हों । .....
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