शशि कपूर रायपुर आए थे । इस बार प्रभाकर चौबे उन्हीं की स्मृति को साझा कर
रहे हैं । उल्लेखनीय है कि हाल ही में मशहूर अभिनेता शशिकपूर का निधन हुआ । बहुत
कम लोगों को पता होगा कि शशि कपूर रायपुर आए थे । निधन पर अखबारों या सोशल मीडिया में भी
इस बात का ज़िक्र नहीं दिखा । इस बहाने उनकी स्मृति को साझा कर रहे हैं ।
आपकी प्रतिक्रियाओं और सुझावों का भी स्वागत रहेगा।
जीवेश प्रभाकर
अपनी बात
मन हुआ रायपुर पर लिखा जाए - बहुत
पहले देशबन्धु का साप्ताहिक संस्करण भोपाल से प्रकाशित हो रहा था तब 12 कड़ियों में रायपुर पर लिखा था, खो गया । पुन: कोशिश कर रहा हूँ - इसमें कुछ छूट रहा हो तो
पाठक जोड़ने का काम कर सकते हैं । रायपुर के बारे में एक जगह जानकारी देने का
मन है - अपना रायपुर पहले क्या कैसा रहा
...।
-प्रभाकर
चौबे
रायपुर स्मृतियों के झरोखे से- 4
पृथ्वीराज के साथ रायपुर आए थे शशि कपूरःप्रभाकर चौबे
हाल
ही में मशहूर अभिनेता शशिकपूर का निधन हुआ । बहुत कम लोगों को पता होगा कि शशि
कपूर रायपुर आए थे । निधन पर अखबारों या सोशल मीडिया में भी
इस बात का ज़िक्र नहीं दिखा ।
शशि
कपूर 1956 में पृथ्वीराज कपूर की नाटक
मंडली पृथ्वी थिएटर के साथ रायपुर
आए थे। उनके साथ उनके भाई शम्मी कपूर भी थे । यह उल्लेखनीय है कि पृथ्वीराज कपूर
उस ज़माने में अपनी नाटक मंडली पृथ्वी थिएटर के बैनर तले पूरे देश में नाटक किया करते थे ।
पठान, दीवार जैसे उनके प्रसिद्ध नाटक
रहे जिसे वे देश भर में प्रदर्शन किया करते । यहां रायपुर में शारदा टॉकीज (बाद
में इसका नाम जयराम टॉकीज हो गया) को सात दिनों के लिए बुक किया। वे रोज एक नाटक
का प्रदर्शन करते। पृथ्वीराज कपूर के साथ उनके दो पुत्र शशि कपूर व शम्मी कपूर भी
आए थे। बाद में शशि कपूर ने इसी पृथ्वी थिएटर के नाम पर मुंबई में प्रेक्षागृह की
स्थापना की जो आज भी मुंबई में हिन्दी रंगमंच के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका अदा
कर रहा है ।
पृथ्वी
राज अपनी टीम के साथ कांकेर बाड़ा (गोकुल चंद्रमा मार्ग), बुढ़ापारा में ठहरे थे। शम्मी कपूर और शशि कपूर दोनों रोज ही
बूढा तालाब में तैरने जाते -जमकर तैरते और तैरते हुए बूढ़ा तालाब के टापू तक पहुंच
जाते और वहां से घाट तक वापस आते दोनों भाईयों में मानो काम्पटीशन होता कि कौन
पहले टापू तक पहुंचकर वापस घाट तक आता है। कुछ स्थानीय युवक भी उनके साथ शामिल हो
जाते । तालाब के घाट पचरी में दर्शकों की भीड़ लगी रहती।
पृथ्वी राज कपूर ने एक सप्ताह तक शो किया । सातो दिन उनके
नाटक में भारी भीड़ रही।
सामने की टिकिट 5 रूपए
का तथा बालकनी की 2 रूपए
थी। एक और बात वे अपनी के साथ कांकेर बाड़ा से (जहां रूके थे) शारदा टॉकीज
(प्रदर्शन स्थल) टांगे से आते-जाते।
यह
भी उल्लेखनीय है कि नाटक के बीच सामने की सीट पर कोई व्यक्ति बात करते दिखता तो वे
वहीं उसी सीन पर नाटक का प्रदर्शन रोक देते- कहते या तो आप बातें कर लीजिए या नाटक
देख लीजिए, खलल न डालिए। नाटक खत्म होने के
बाद वे शारदा टॉकीज के सामने गेट पर हाथ में कपड़ा फैलाकर खड़े हो जाते, आंखे बंद कर लेते लोग उसमें पैसे डालते।
पृथ्वीराज
कपूर जहां ठहरे थे, कांकेर
बाड़ा में, वहां किसी तरह की सुरक्षा
व्यवस्था नहीं थी। सामान्य नागरिक की तरह रूके । शहर में नाटक प्रेमी युवा उनसे
बेरोकटोक मिलने जाते । उनसे मिलने का समय सुबह 7 बजे से 10 बजे
तक का निर्धारित था। दोपहर को वे रिहर्सल करते।
इन्हीं
सात दिनों के दौरान एक दिन उन्हें छत्तीसगढ़ कॉलेज के छात्रसंघ के पदाधिकारीयों को
प्रमाण-पत्र देने हेतु आमंत्रित किया गया। आमंत्रण देने प्राचार्य श्री योगानंदन गए थे।कार्यक्रम दोपहर एक बजे रखा गया था। छात्र संघ
पदाधिकारियों को प्रमाण-पत्र देने के बाद उन्होंने नाटक पर काफी बातें की ।
छात्र-छात्राओं के प्रश्नों के उत्तर दिए ।
शशि
कपूर के निधन पर ये बातें याद हो आईं। और इसलिए भी कि शहर वालों को ये पता चले ।
........
जारी
यादें साझा करने के लिए धन्यवाद जी.
ReplyDeleteशुक्रिया भाई
Deleteयही बात मेरे पिता स्व.भास्कर काठोटे ने भी हमें बताई थी. यह भी बताया था कि सोहराब मोदी की पारसी थिएटर कंपनी बिलासपुर में कंगाल हुई. चूंकि प्रुथ्वीराज भी पारसी थिएटर करते थे, इसलिए इसका जिक्र किया। बहरहाल यादों के झरोखे खोलने के लिए श्री प्रभाकर चौबे जी को धन्यवाद।
ReplyDeleteशुक्रिया अरुण भाई ।
Deleteजिस रात शशि साहब का देहांत हुवा। उस रात रायपुर में उनकी यादें पर मुझे खबर बनानी थी। कई लोगों से पूछा किन्तु किसी ने भी नहीं बताया की शशि साहब रायपुर आए थे। आखिर राज टाकीज गया जहाँ 45 साल से कार्यरत सहगल जी से मुलाकात हुई उन्होंने टाकीज में चली शशि साहब की कुछ हिट फिल्मों में टिकट खरीदने उमड़ने वाली दर्शकों की भीड़ के बारे में जानकारी दी। उसी आधार पर शशि कपूर को याद करते हुवे खबर बनाई थी। यदि ये मालूम होता की शशि साहब बूढ़ा तालाब में स्नान किया करते थे तो एक अच्छी खबर बनती। खैर शशि साहब को नमन।
ReplyDeleteThanx for response dear unknown friend. दरअसल आज के दौर में जो जानते हैं उन्हें लोग नहीं जानते .... अखबारों व अन्य मीडिया में जब कुछ नहीं दिखा तभी हमने इसे प्रकाशित करने का फैसला किया । आगे आप और बहुत सी जानकारियों से रू ब रू होते रहेंगे । बहरहाल आपका शुक्रिया ।
Deleteजीवेश चौबे
यह सारे अखबारों में आना चाहिए था,अफसोस आज की पत्रकारिता में वो पुराना जुनून और दमखम नहीं मिलता कि इस तरह रायपुर में उन्हें याद किया जाता,यह स्मृतिविहीनता दुखद और खतरनाक है....
ReplyDeleteसही कहा डॉक्साब
Delete