कोरोना का कहर है और देश क्या पूरे संसार में बहुतई मारा मारी मची पड़ी
है । ऐसा समय है कि जान पहचान वाले क्या दोस्त यार मां बाप- बेटे- बेटी से लेकर
प्रेमी प्रेमिका तक मिल नहीं पा रहे । अब विदेशियों का क्या वो तो पहले ही परिवार
से दूर रहते हैं, तकलीफ तो हम सनातनी सभ्यता के वाहक , आदिकाल से कुट्टम कुटाई
करते हुए भी संयुक्त परिवार में रह रहे भारतीय परिवार को हो गई । अब कोरोना को
क्या पता हमारे संस्कार ? वो तो मुआ चीन से निकला और पसर गया ।
अब हम तो पहले भी व्हेन सांग को सर पे बिठा चुके हैं और इसी परंपरा का निर्वाहन
करते हुए शी जिंग पिंग को झूला झुला बैठे। अच्छा सिला दिया तूने मेरे प्यार का...
की तर्ज पर मुआ चीन पालना का बदला कोरोना से निकालेगा ये तो किसी ने नहीं सोचा था
। चीनी हिन्दी भाई भाई बोल के पहले नेहरू धोखा खाए अब नेहरू को गरियाने वालों को भी नेहरू की तरह फिर
ये सिला मिला कहने लगे हैं । मगर हमारे संस्कार और परंपरा देखिए कि हम तो अतिथि देवो भव के संस्कार से नहाए , अंकल
ट्रंप को भी मेहमान बनाकर गर्व महसूस करने
से नहीं चूके ।
इसी परंपरा के चलते सब अपने अपने नाते
रिश्तेदारों के हाल पूछ रहे हैं, सरकार भी कह रही है बुजुर्गों का ध्यान रखें । अब
लॉक डाउन करके घर बिठा देगे तो कोई क्या करेगा । हमने भी सरकार का कहा मान ताउ
चाचा को फोन लगा दिया । हमारे ताउ चाचा ,
हैं तो चाचा मगर बचपन से हम सब उन्हें ताऊ चाचा कहते रहे ,बस ये समझ लो जरा सा
हेरफेर है जीडीपी की तरह। बहरहाल ताऊ चाचा के हाल जानने का मन किया, जिनसे पता नही
कितने बरस से हम मिले तो नहीं मगर कभी कभार मुलाकात होई जाती है । ठेठ देसी किसम
के 70 पार के ताउ चाचा । सेवानिवृत्त शिक्षक, शिक्षक क्या पूरी शिक्षा व्यवस्था
हैं । हमारे यहां जैसे शिक्षा मिले न मिले बच्चे को व्यवस्था का ज्ञान तो मिल ही
जाता है वैसई ताऊ चाचा मिले न मिले ज्ञान जरूर मिल जाता है । 70 साल में शिक्षा तो
देशी, अंग्रेजी, मिश्रित न जाने कितनी बदली मगर शिक्षा व्यवस्था नहीं बदली, वैसई
ताऊ चाचा हैं । 70 सालों में सरकार भी
बदलती रही मगर व्यवस्था की तरह ताऊ चाचा आज तक नहीं बदले हैं ।
जैसई मोबाइल लगाया बड़े भैया ने उठाया,
जाहिर है मोबाइल तो भैया के ही पास होता है।
जैसे कोई सामान पत्नी को दिलाना न हो तो कैसे उलट पुलट के रख देने का मन
करता है वैसई भैया से हां हूं मे बात करके ताउ चाचा से बात करने की सोच रहे थे मगर
भैया ताउ के अवतार ही हैं, जैसी पूंजी वैसा उत्पाद, बात खत्म ही नहीं कर रहे थे ।
पता नहीं कहां कहां की पंचायत ले बैठे, क्या बताएं छुट्टन जिज्जी परेशान है, जीजा
उनको अभी भी मारते हैं..तुम्हारी भौजी के पांव का दर्द अब हमारे सर का दर्द हो गया
है..बेटा भक्त हो गया है, बेटी के पांव घर पर नहीं टिकते... अच्छा वो छोड़ो तुम
बताओ... तुम्हारी सास कैसी हैं, ससुर को अटैक आया था क्या, ऐसी खबर मिली थी, साले
का प्रमोशन हो गया कि नहीं। याने एक तो फोन करते नहीं जब हमने किया तो सारी पंचायत
करने लगे । जैसे नेताजी पत्रकार वार्ता में सवालों का जवाब न दें बस अपनी हीबात
करते रहें । वैसे भी आजकल सब मन की बात ही करने लगे हैं , दूसरे की सुनते नहीं बस
अपनी सुनाए पड़े रहते हैं ।
अच्छा बताओ बहू कैसी है...अब हमसे रहा
नहीं गया, हमने कहा ठीक ही है हम कोई थोड़े उसको मारते हैं...जैसे सत्ताधारी
पार्टी के विधायक पाला बदल लें तो नेता कैसे खिसिया जाता है वैसई भैया खिसिया गए
और ज़रा सी देर को मुंह बंद हुआ, बस हमने तुरत कहा- ताउ चाचा हैं ? खिसियाए भैया ने सारी भड़ास निकालकर कहा-
वो कहां जायेंगे, लो कर लो बात। हमने राहत की सांस ली मानो हाई कमान से मिलने का
टाइम मिल गया हो ।
कैसे हो ताउ चाचा..मैने जैसे ही पूछा
, वो फट पड़े ।
तुमको क्या लगता है... ? जवाब की जगह प्रश्न दाग दिया ।
नहीं, याने तबियत वबियत ठीक है न, मैने
सफाई दी।
हां हं.. हमें क्या होना है.. एकदम फिट
हैं...
वो तो हैई ताउ चाचा, मगर क्या है न
कोरोना फैला है, सरकार कह रही है बुजुर्गों का ध्यान रखें ।
हम सब समझते हैं बेटा... तुम्हारे चाचा
हैं .. एक ये हैं हमारे पुत्र, रोज पूछते हैं बबा बुखार तो नहीं है न, मोहल्ले
वाले अलग पूछ रहे हैं । रोज बुढ़उ बुढ़उ कहने वाले ये बुजुर्गों का ख्याल रख रहे
हैं या रास्ता देख रहे हैं जाने का । मगर जान लो हमें कुछ नहीं होना।
मैने कहा, नहीं ताउ ऐसा नहीं, हम तो
सरकार की बात मानकर आपके हालचाल पूछ ले रहे हैं ।
अरे बेटा मेरा क्या हाल पूछते हो तुम सब
। देश का हाल देखो मेरा छोड़ो, ताऊ चाचा भावुक हो गए,उनका शिक्षक जाग गया...बोले,
तुम लोगों को तो ये ही नहीं पता कि इन 70 साल में क्या, कौन कितने कमजोर हो गए,
किसकी सेहत बिगड़ गई , कौन कोरेन्टाइन में चला गया , रखना है तो उनका ख्याल रखो।
मुझे छोड़ो, ये दम तोड़ रहे हैं इनकी सेहत का ख्याल करो ।
मैं अवाक रह
गया। एक बार फिर ताऊ चाचा का ज्ञान मिल गया । सचमुच ये सरकारें
व्यवस्थाओं,संस्थाओं की चिंता से दूर और बेखबर कर आत्मकेन्द्रित बना देती हैं।
पूंजीवादी सरकारें राहत काल में आदमी को व्यक्ति केन्द्रित और संकटकाल में
समाजोन्मुखी बना देती हैं । सड़कों पर
भटकते लाखों कामगारों , समाज के गरीब तबकों बुजुर्गों बच्चों सबका ख्याल समाज रखे।
सरकार न तो पहले कुछ करे न बाद में, सारी जिम्मेदारी जनता पर डाल देती है । आज 70 पार के सभी आइसोलेशन
में है, देखिए जनता कब ये लॉक डॉउन खोलती है ।