निश्चित रूप से प्रांत के मुख्य मंत्री
को हर समुदाय या जमात और जमातियों के साथ होना ही चाहिए, हां ये ज़रूर है
कि वो किसी भी समुदाय के उत्पातियों के
साथ नहीं होगा। और ये भी सच है कि हर समुदाय और जमात में उत्पाती होते ही हैं। इन
उत्पतियो को कानून के अनुसार समान रूप से सजा भी देनी चाहिए ।
ये बात इसलिए कही
जा रही है कि छत्तीसगढ़ में विपक्षी दल भाजपा के प्रदेश
अध्यक्ष और अन्य नेताओं ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से सीधे सवाल कर डाला कि वे स्पष्ट करें कि वे तब्लीगी जमातियों के साथ हैं या खिलाफ। छत्तीसगढ़
में मुख्य मंत्री भूपेश बघेल के प्रयासों की बदौलत जहां महामारी कोरोना पर अब तक
काफी हद तक नियंत्रण रखने में कामयाबी हासिल की है ,वहीं अब छत्तीसगढ़ में भी
तबलीगी जमात को लेकर राजनीति शुरु हो गई है ।
इस घोर संकट के समय इस तरह के राजनीतिक वक्तव्य गैरजिम्मेदाराना ही नहीं विपक्ष की गरिमा के
प्रतिकूल भी है। एक ओर प्रधानमंत्री स्वयं पूरे देश के के तमाम राज्यों के
साथ समन्वय व तालमेल बिठा कर आपदा से मिलजुलकर निपटने की अपील और प्रयास कर
रहे हैं वहीं छत्तीसगढ़ में उनकी ही पार्टी के नेताओं द्वारा इस तरह की बयानबाजी
उचित नहीं लगती । इन आपातकालीन परिस्थितियों में इस तरह की राजनीति एक तो विपक्ष
के असहयोगात्मक रवैये को उजागर करती है वहीं दूसरी ओर विपक्ष की सतही राजनीतिक सोच
को भी प्रदर्शित करती है।
निश्चित
रूप से ऐसे कठिन समय में तमाम विरोधाभासों के बावजूद प्रदेश के सभी वर्ग,संप्रदाय
समाज और यहां तक कि प्रत्येक नागरिक के साथ खड़ा होना ही किसी भी मुख्य मंत्री का
दायित्व है । ऐसे मुश्किल वक्त में तमाम वैचारिक मतभेदों के बावजूद क्या देश के
प्रधान मंत्री देश के नागरिकों के साथ भेदभाव बरत सकते हैं , निश्चित रूप से ऐसी
उम्मीद क्या कल्पना भी नहीं की जा सकती । इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि
ऐसी विनाशकारी आपदा के समय समाज के प्रति सभी दोषियों को सजा दी जानी चाहिए मगर
भेदभावों से ऊपर उठकर सभी के साथ समान रूप से संविधान व कानून के अनुसार कार्यवाही
की जानी चाहिए ।
पूरे देश
में कोरोना माहामारी के कठिन दौर में
कोरोना से ज्यादा मारामारी सांप्रदायिक वायरस को लेकर मची हुई है । पूरे देश में
महामारी अब कोरोना से हटकर सांप्रदायिक दोषारोपण और नफरत फैलाने पर केन्द्रित होती
जा रही है । तमाम न्यूज चैनल इसे और हवा देने में सबसे आगे हैं। यह बात भी गौरतलब
है कि तबलीगी जमात के बहाने तमाम न्यूज़ चैनलों द्वारा पूरे मुस्लिम समाज को दोषी
ठहराने की बढ़ती प्रवृत्ति और पूरे धर्म को निशाना बनाकर वैमलस्य फैलाए जाने को
ध्यान में रखते हुए देर से ही सही मगर केन्द्र सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक
एडवायसरी जारी करी जिसमें कोरोना को लेकर
किसा भी व्यक्ति विशेष, समुदाय , संप्रदाय, धर्म, जाति या अन्य पूर्वाग्रहित
टिप्पणी करने पर प्रतिबंध लगा दिया है । कुछ चौनलों को इस संबंध में माफी तक
मांगनी पड़ी है । स्वास्थ्य मंत्रालय के अलावा न्यायालय ने भी संप्रदाय विशेष के
खिलाफ जारी नफरत भरे कैंपेन को बंद करने के निर्देश दिए हैं । निश्चित रूप से
तबलीगी जमात ने गैरज़िम्मेदाराना हरकत की है मगर इसमें केन्द्रीय प्रशासन और
दिल्ली सरकार की भी लापरवाही से इनकार नहीं किया जा सकता । अब जबकि जो होना था हो
चुका तब लकीर पीटने और कोयला घिसने की बजाय इस पर काबू पाने की चुनौतियों से मिलकर
जूझना होगा ।
राजनैतिक बयानबाजियों के साथ ही प्रशासनिक व
न्याययिक टिप्पणियों व आदेशों से भी छत्तीसगढ़
की आम जनता के बीच संदेह व दुराग्रह को बल मिला है । एक ओर छत्तीसगढ़ उच्च
न्यायालय ने कोरोना को लेकर सिर्फ तबलीगी जमात से जुड़े तमाम लोगों की जानकारी व
टेस्ट जल्द से जल्द करवाने के लिए राज्य सरकार को निर्देश जारी किए । दूसरी ओर
प्रदेश के राजनांदगांव जिला कलेक्टर ने एक कड़ा
आदेश जारी कर दिया कि पहचान छिपाने वाले सिर्फ तब्लीगी जमात से संबंध रखने वालों
के खिलाफ आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत तो कार्रवाई
की ही जाएगी, साथ ही यदि उसके संपर्क में आने से किसी व्यक्ति की मौत होती है तो
उसके खिलाफ धारा 302 के तहत हत्या का मामला दर्ज किया जाएगा। हालात बेशक नाज़ुक और विस्फोटक हैं मगर क्या हाई कोर्ट और
राजनांदगांव के कलेक्टर के आदेश सिर्फ तबलीगी जमात को लेकर दिया जाना उचित है ? अन्य
वर्ग, समुदाय के लोग जो जानकारियां छुपाएं उन पर क्या इस आदेश के तहत कार्यवाही
नहीं की जाएगी ? गौरतलब है कि महाराष्ट्र हाई कोर्ट की बैंच ने हाल
ही में कोरोना को लेकर धारा 51 ए का पाठ
पढ़ाते हुए स्पष्ट व सख्त टिप्पणी की है कि सभी समरसता ,भातृत्व एवं
समानता की भावना से काम करें, किसी भी जाति, धर्म वर्ग वर्ण व भाषा के आधार पर
भेदभाव नहीं किया जा सकता।
उल्लेखनीय
है कि मध्य प्रदेश के आईएएस अफसर ने भी जानकारी छुपाने का जुर्म किया जिसके चलते
उनके परिवार सहित 100 से ज्यादा लोग प्रभावित हो गए , क्या इनका जुर्म तब्लीगी जमातियों
के जुर्म से अलग या कम कहा जा सकता है । इस तरह किसी भी धर्म जाति समुदाय संप्रदाय
वर्ण या वर्ग के साथ न्यायिक भेदभाव संविधान की मूल भावनाओं के खिलाफ है । रायपुर
में भी प्रशासन ने स्पष्ट किया है कि कई लोग विदेश से वापस आकर जानकारी छुपा रहे
हैं और लगभग 76 लोग गायब हैं जिनकी तलाश जारी है । इनमें तबलीगी के साथ अन्य जमात
के लोग भी होंगे तो क्या इनके लिए अलग अलग धाराएं लगाई जायेंगी?
इस बात
से कोई इंकार नहीं कर सकता कि दोषियों पर कड़ी कार्यवाही की जानी चाहिए । मगर
इसमें सामुदायिक या सांप्रदायिक भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए बल्कि सभी दोषियों पर
समान रूप से संविधान व कानून के अनुसार कार्यवाही की जानी चाहिए । हाई कोर्ट के
निर्देशों के मद्दे नज़र मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कुछ विशेष पत्रकारों के साथ
वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग कर स्थिति साफ करने की कोशिश की और तब्लीगी जमात से जुड़े
प्रकरणों की जानकारी से अवगत कराया । मगर मुख्य
मंत्री को सफाई देने की बजाय सभी नागरिकों के साथ खड़े रहने की बात दृढ़ता से कहनी
होगी । एक छोटे से तबके के चलते पूरे धर्म को निशाना बनाए जाने की पृवृत्ति के
खिलाफ कम से कम छत्तीसगढ़ में पूरी ताकत व दृढ़ता से खड़े होकर इस सांप्रदायिक
महामारी को छत्तीसगढ़ में फैलने से रोकना होगा।
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