छत्तीसगढ़ी फिल्मों की 5 दशकों से भी ज्यादा
की यात्रा में आज एक नया और महत्वपूर्ण अध्याय जुड़ गया । आज एक छत्तीसगढ़ी फिल्म हंस झन पगली फंस जाबे” छत्तीसगढ़ के फिल्मकारों की मंशा के अनुरूप “मल्टीप्लैक्स में प्रदर्शित हुई । इसी के साथ छत्तीसगढ़ी फिल्मों
को एक नया आयाम मिला साथ ही छत्तीसगढ़ी फिल्मों
के निर्माता निर्देशकों की लम्बे समय से चली आ रही अपेक्षाओं को व मांग को पहली आंशिक
सफलता मिली । आंशिक इसलिए कि अभी फिल्म “हंस झन पगली फंस जाबे” को एक ही मल्टीप्लैक्स में सिर्फ एक शो मिला है मगर फिर भी छत्तीसगढ के फिल्म निर्माताओं व निर्देशकों
में उत्साह का माहौल है ।
फिल्म “हंस झन पगली फंस जाबे” के निर्देशक सुप्रसिद्ध फिल्म निर्देशक सतीश जैन
हैं। उल्लेखनीय हैकि पांच दशक पहले मनु नायक
द्वारा निर्मित पहली छत्तीसगढ़ी फिल्म “कहि
देबे संदेश” लोकप्रिय रही थी मगर उसके
बाद एक लम्बे अरसे तक छत्तीसगढ़ी फिल्म जगत
में सन्नाटा छाया रहा । फिर एक लम्बी खामोशी के बाद सदी की शुरुवात में सतीश जैन की
फिल्म “मोर छइयां भुइंया” आई और बडी कामयाब रही । सतीश जैन की ही फिल्म “मोर छइयां
भुइंया” ने छत्तीसगढ़ी फिल्मों को पुनर्जीवन दिया और प्रदेश में छत्तीसगढ़ी फिल्मों
का बाजार स्थापित किया । इस फिल्म से ही छत्तीसगढ़ी
फिल्मों के एक नए दौर की शुरुवात हुई । और आज मल्टीप्लैक्स में सतीश जैन की ही फिल्म
“हंस झन पगली फंस जाबे” ने छत्तीसगढी फिल्मों
की नई इबारत लिखी । हमसे बात करते हुए सतीश जैन ने छत्तीसगढ़ी फिल्मों से जुड़े कलाकारों, निर्माताओं निर्देशकों और समस्त शुभचिंतकों
को इस उपलब्धि का सारा श्रेय दिया । उन्होने बताया कि दो दिन पहले अचानक पंडरी स्थित
मल्टीप्लैक्स संचालक का फोन आया कि वे अपने यहां उनकी नई छत्तीसगढ़ी फिल्म लगाना चाहते
हैं , बस दो दिन में ये हो गया । सतीश जी ने इस कामयाबी के लिए प्रदेश के संस्कृति
मंत्री व मुख्य मंत्री के संवेदनशील रुख के प्रति अपना आभार व्यक्त किया । सतीश जी
ने कहा कि इसके पहले मॉल में उनकी शर्तों पर फि्म लगानी पड़ती थी जो काफी मंहगा पड़ता
था मगर अब एक नए सिलसिले की शुरुवात हुई है जिसे और आगे बढाए जाने की जरूरत है । हालांकि
सतीश जी बहुत ज्यादा मल्टीप्लैक्स पर निर्भर होने के पक्ष में भी नहीं हैं । उनका मानना है कि महाराष्ट्र की तरह छत्तीसगढ़ में
भी सल्टीप्लैक्सों में छत्तीसगढ़ी फिल्मों के लिए विशेष पैकेज का प्रावधान होना चाहिए
जिससे फिल्मकारों को प्रोत्साहन मिलेगा । इस सब के बावजूद सतीश जी मानते हैं कि अभी छत्तीसगढ़ी फिल्मों
को अपनी गुणवत्ता व स्तर में काफी सुधार लाना है मगर साथ ही वे इसे लेकर काफी
आशान्वित भी हैं कि बहुत जल्द छत्तीसगढ़ के फिल्मकार इस कमी को दूर कर लेंगे ।
छत्तीसगढ़ी फिल्मों
के सुप्रसिद्ध निर्देशक प्रेम चंद्राकर मल्टीप्लैक्स में छत्तीसगढी फिल्म के प्रदर्शन
को लेकर बहुत खुश हैं । उन्होंने कहा कि देर से सही एक अच्छी शुरुवात हुई है । वे कहते
हैं कि लम्बे समय से इस मांग को लेकर छत्तीसगढ़ी फिल्मकार आंदोलन कर रहे थे और हाल
में ही जबरदस्त प्रदर्शन हुआ था । ये उसी संघर्ष का फल है । वे वर्तमान सरकार के संस्कृति मंत्री व विशेष रूप
से मुख्यमंत्री के सहयोग व समर्थन से काफी उत्साहित हैं । उनका मानना है कि सरकार के
दबाव के चलते ही मल्टीप्लैक्स वाले अपनी पुरानी शर्तों को समाप्त कर सामान्य रूप से
फिल्मों के प्रदर्शन के लिए तैयार हुए हैं । प्रेम जी का मानना है कि अब फिल्मकारों
पर भी बेहतर फिल्म बनाने का दबाव होगा । वे कहते हैं कि महाराष्ट्र व अन्य प्रदेशों
की तरह छत्तीसगढ़ में भी मल्टीप्लैक्स में छत्तीसगढ़ी फिल्मों के लिए नियमित रूप से
शो की संख्या निर्धारित की जानी चाहिए । इसके लिए वे सरकार से ऐसे नियम बनाए जाने की
अपेक्षा करते हैं जिसमें फिल्मकारों व मल्टीप्लैक्स मालिकों दोनों संतुष्ट हों । प्रेम
चंद्राकर जी इसे छत्तीसगढ़ी फिल्मों के नए युग की शुरुवात के रूप में मानते हैं ।
छत्तीसगढ़ी फिल्म व टीवी सीरियल के वरिष्ठतम निर्देशकों
में अग्रणी नाम संतोष जैन मल्टीप्लैक्स में छत्तीसगढ़ी
फिल्मों के प्रदर्शन को लेकर
लम्बे समय से संघर्ष कर रहे हैं । संतोष जैन “हंस झन पगली फंस जाबे” के मल्टीप्लैक्स में प्रदर्शन को आंशिक
सफलता मानते हैं । मल्टीप्लैक्स में छत्तीसगढ़ी
फिल्मों के प्रदर्शन को लेकर लोकल बनाम ग्लोबल
की लड़ाई लड़ रहे संतोष जी का कहना है कि हाल
के प्रदर्शन ,घेराव व गिरफ्तारी ने शासन व
प्रशासन को भी फिल्म निर्णाताओं व निर्देशकों की ताकत का अहसास दिलाया है जिससे मल्टीप्लैक्स
मालिकों के रुख व रवैयै में बदलाव लाया है ।
उनका कहना है कि संस्कृति मंत्री श्री ताम्रध्वज साहू व मुख्यमंत्री श्री भूपेश
बघेल एस मुद्दे पर काफी संवेदनशील हैं और उनका रुख काफी सकारात्मक व उत्साहजनक रहा
है । हालांकि ये प्रयोगात्मक स्तर पर एक शो रखा गया है जिसके रिस्पॉंस पर ही आगे की
संभावनाएं आकार लेंगी । मल्टीप्लैक्स के नफा
नुकसान के सवाल पर संतोष जी ने कहा कि क्षेत्रीय
फिल्मों के विकास के लिए मल्टीप्लैक्स मालिकों को कुछ शुरुवाती नुकसान हो सकता है मगर आगे उन्हें फायदा
ही होगा क्योंकि मल्टीप्लैक्स में प्रदर्शन होने से जहां एक ओर छत्तीसगढ़ी फिल्मों
को नया शहरी दर्शक वर्ग मिलेगा वहीं निर्माताओं निर्देशकों पर भी बेहतर फिल्में बनाने
का दबाव बढेगा जिससे अच्छी फिल्में बनेंगी ।वे इस बात को मानते हैं कि अभी अपेक्षाओं
के अनुरूप स्तरीय फिल्में उतनी नहीं बन पा रही हैं ।
छत्तीसगढ़ी फिल्मों के लोकप्रिय युवा निर्माता
व निर्देशक डॉ. पुनीत सोनकर भी मल्टीप्लैक्स में छत्तीसगढ़ी फिल्म के प्रदर्शन से काफी
उत्साहित हैं । वे इसके लिए अपने साथियों के
संघर्ष के साथ ही संस्कृति मंत्री व मुख्यमंत्री के सकारात्मक रुख से काफी आशान्वित
हैं । उन्होने कहा कि पहली बार सरकार छत्तीसगढ़ी फिल्मों को लेकर इस तरह संवेदनशील
व सकारात्मक रुख दिखा रही है । मल्टीप्लैक्स में छत्तीसगढ़ी फिल्मो के प्रदर्शन से
छत्तीसगढी फिल्मों को नया आयाम मिला है इससे प्रेरित होकर नए फिल्मकार भी इस क्षेत्र
में आगे आयेंगे । उन्होने आशा व्यक्त की कि मल्टीप्लैक्स में प्रदर्शन की कामयाबी के
साथ साथ सरकार छत्तीसगढ़ी फिल्मों को अनुदान व कलाकारों को पैंशन देने की दिशा में
भी इसी तरह सकारात्मक रुख दिखाएगी ।
तकनीक
के विकास से फिल्म बनाना आसान हुआ जिसके चलते कुछ ही अरसे में अंधाधुंध फिल्में बाजार
में आती चली गईं हैं । छत्तीसगढ़ी फिल्मों
के नए दौर को भी लगभग दो दशक हो रहे हैं ,
लगातार फिल्में भी बन रही हैं मगर इस तल्ख हकीकत से इंकार नहीं किया जा सकता कि तकनीकी
रूप से काफी सक्षम होने के बावजूद छत्तीसगढ़ी फिल्मों में कहानी की मौलिकता और विषय व कलात्मक गुणवत्ता का जबरदस्त
अभाव है। ज्यादातर बम्बइया और भोजपुरी फिल्मों की भोंडी नकल के चलते कोई भी फिल्म उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल नहीं कर पाई
है । सवाल ये है कि क्या मल्टीप्लैक्स में
प्रदर्शन की शुरुवात हो जाने मात्र से छत्तीसगढ़ी फिल्में अपनी कमजोरियों से निजात
पा कुछ बेहतर कर पायेंगी ? क्योंकि फिल्में मल्टीप्लैक्स में लगने से नहीं अपनी गुणवत्ता
के कारण ही चलती हैं ।आशआ है छत्तीसगढ़ी फिल्मकार इस दिशा में भी सोचेंगे ।
( देशबंधु में 16 जून 2019 को प्रकाशित)
( देशबंधु में 16 जून 2019 को प्रकाशित)
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