आजादी के दिन छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री
भूपेश बघेल ने अन्य पिछड़े वर्ग का आरक्षण कोटा बढाकर साधने का प्रयास किया है । विगत कई वर्षों से छत्तीसगढ़
का अन्य पिछड़ा वर्ग आरक्षण में अपनी भागीदारी बढ़ाने को लेकर संघर्षरत था । विदित
हो कि छत्तीसगढ़ राज्य में अब तक एसटी को 32, एससी को 12 और ओबीसी को 14 फीसदी आरक्षण मिल रहा था। भूपेश बघेल की घोषणा के बाद अब क्रमश: 32, 13 और 27 फीसदी हो जाएगा । यानी इस फैसले से सबसे अधिक फायदा ओबीसी को मिला
है, जिसके कोटे में करीब दोगुना
बढ़ोतरी की गई है । छत्तीसगढ़
में आबादी के हिसाब से आरक्षण की मांग को लेकर अपनी लड़ाई लड़ रहा अन्य पिछडा वर्ग
इस घोषणा से कितना संतुष्ट होगा ये वक्त ही बताएगा क्योंकि कई संगठन इसे कम ही बता
रहे हैं ।
छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जाति की जनसंख्या लगभग 13 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या 30 प्रतिशत तथा
अन्य पिछड़ा वर्ग की आबादी लगभग 47 प्रतिशत है । मुख्यमंत्री
की घोषणा के मुताबिक अनुसूचित जाति व जनजाति को तो आबादी के अनुपात के मुताबिक आरक्षण
मिल जाएगा मगर अन्य पिछड़ा वर्ग अभी भी अपने अनुपात के मुताबिक आरक्षण नहीं पा सका है । नई घोषणा के अनुसार इसे 27 प्रतिशत आरक्षण दिया जाएगा हालांकि अन्य पिछड़ा वर्ग के कोटे को पूर्व से लगभग दोगुना कर दिया
गया है मगर अन्य पिछड़ा वर्ग की आबादी के अनुपात से देखा जाए
तो यह आधा ही है ।
उल्लेखनीय
है कि 2012 में तत्कालीन रमन सरकार ने आरक्षण नीति में बदलाव करते हुए अधिसूचना जारी
की थी, इसके तहत अनुसूचित जनजाति
वर्ग को 32 फीसदी, अनुसूचित जाति वर्ग को 12 फीसदी और अन्य पिछड़ा वर्ग को 14 फीसदी आरक्षण देना तय किया गया था जिससे कुल आरक्षण 58 फीसदी हो गया था । विगत 15
अगस्त को भूपेश बघेल की
घोषणा के बाद अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और
अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थाओं में आरक्षण
अब 58 से बढ़ाकर 72 फीसदी कर दिया गया है । हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की
सीमा 50 प्रतिशत तक सीमित रखने का आदेश दे रखा है मगर आज सत्ता प्रधान राजनीति के दौर में आरक्षण की सीमा 50 फीसदी तक सीमित रखने का
मुद्दा जटिल है । ऐसा नहीं है कि राज्यों ने 50 फीसदी की सीमा पार न की
हो। हरियाणा, महाराष्ट्र और तमिलनाडु
में यह स्थिति लागू है । रमन सरकार के 58 फीसदी आरक्षण देने संबंधी निर्णय को 2012 में ही चुनौती दी गई ये आज तक कोर्ट में सुनवाई हेतु लंबित हैं । भूपेश बघेल के इस
फैसले को अदालत में चुनौती देने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है क्योंकि
विगत दिनो मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार
द्वारा अन्य पिछड़ा वर्ग का आरक्षण कोटा 27 प्रतिशत किए जाने पर मध्य प्रदेश उच्च
न्यायालय ने रोक लगा दी है। दूसरी
ओर संविधान के अनुच्छेद 15 (4) के
अनुसार राज्य को यह अधिकार है कि अगर वह चाहे, तो अनुसूचित जनजाति के लिए विशेष प्रावधान कर
सकता है. अनुच्छेद 16 (4) में कहा गया है कि यदि राज्य चाहे तो सरकारी
सेवाओं में पिछड़े वर्गों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व के लिए आरक्षण ला सकता है ।
यहां एक बात पर गौर करना जरूरी हो जाता है कि यदि सवर्ण गरीबों के लिए भी
10 प्रतिशत आरक्षण लागू कर दिया जाता है तो प्रदेश में आरक्षण का कुल प्रतिशत 82 हो जाएगा
। इन परिस्थितियों में छत्तीसगढ़ की इस नीति पर क्या संवैधानिक व राजनैतिक
प्रतिक्रिया सामने आएगी ये देखना होगा ,यह भी देखना होगा कि सरकार रोजगार सृजन
के प्रति कितनी गंभीर है । आरक्षण का लाभ तो आखिरकार रोजगार की
उपलब्धता पर ही निर्भर करता है । इन सब प्रश्नो पर जनता व खासकर युवा वर्ग को सोचना
विचारना होगा । आज के दौर में यह समझना ज्यादा मुश्किल नहीं रह गया
है कि मुख्यमंत्री ने ये दांव क्यों चला । मतदाता पत्र बनाने की उम्र का हर
व्यक्ति जानता है कि निकट भविष्य में प्रदेश में निकाय चुनाव हैं और लोकसभा चुनाव
में बुरी कदर पटखनी खा चुकी कॉंग्रेस अपनी साख बचाने के लिए
सभी दांव आजमाएगी । पिछड़े वर्ग को दिया गया यह तोहफा उसी
मिशन को हासिल करने की दिशा में उठाया गया कदम है । मुख्यमंत्री के इस निर्णय का कॉंग्रेस को आने
वाले निकाय चुनावों में कितना और किस रूप में फायदा होगा इसका आकलन चुनाव के
पश्चात ही किया जा सकेगा मगर फिलहाल भूपेश बघेल का यह दांव
आगामी निकाय चुनावों के लिए कॉंग्रेस के लिए शुरुवाती बढ़त माना जा सकता है ।
जीवेश चौबे
विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में समसामयिक विषयों
पर लेख, कहानी व कविताएं प्रकाशित
प्रकाशक संपादक - विकल्प विमर्श एवं उप संपादक साहित्यिक पत्रिका "अकार"
ई मेल: jeeveshprabhakar@gmail.com
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