प्रगतिशील लेखक संघ रायपुर द्वारा हरिशंकर परसाई जयंती पर गोष्ठी का आयोजन | |
हरिशंकर परसाई जयंती के अवरसर पर प्रगतिशील लेखक संघ रायपुर द्वारा एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया । आयोजित गोष्ठी में मुख्य अतिथि वरिष्ठ समीक्षक श्री राजेन्द्र मिश्र एवं विशेष अतिथि के रूप में वरिष्ठ साहित्यकार श्री विनोद कुमार शुक्ल उपस्थित थे । कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रगतिशील लेखक संघ छत्तीसगढ़ के संरक्षक एवं वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रभाकर चौबे ने की । हरिशंकर परसाई जयंती के अवसर पर प्रगतिशील लेखक संघ रायपुर द्वारा आयोजित गोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में मुख्य वक्ता सुपरिचित व्यंयकार श्री विनोद शंकर शुक्ल थे । कार्यक्रम का संचालन प्रगतिशील लेखक संघ रायपुर के सचिव जीवेश प्रभाकर ने किया । कार्यक्रम के प्रारंभ में प्रगतिशील लेखक संघ रायपुर की ओर से रायपुर इकाई के अध्यक्ष श्री संजय शाम, श्री नंद कंसारी , श्रीमती उर्मिला शुक्ल , श्री अरुणकांत शुक्ल, वरिष्ठ कथाकार एवं उपन्यासकार श्री तेजिंदर जी ने अतिथियों का स्वागत किया । सर्वप्रथम सुप्रसिद्ध व्यंगकार श्री विनोद शंकर शुक्ल ने आधार वक्तव्य प्रस्तुत किया । अपने उद्बोधन में श्री विनोद शंकर शुक्ल ने परसाई जी के लेखन पर प्रकाश डालते हुये कहा कि लोकशिक्षण में परसाई कबीर व तुलसी की परम्परा के लेखक माने जा सकते हैं । उनके सुप्रसिद्ध कॉलम 'सुनो भई साधो' एवं पूछिए परसाई से के जरिए वे लोक से जुड़कर लोगों को शिक्षित करने की कोशिश करते रहे । श्री विनोद शंकर ने आगे कहा कि परसाई जी का लोक शिक्षण कई संगठनो एवं आंदोलनों से भी कहीं यादा था । श्री शुक्ल ने आगे कहा कि आजादी के पहले प्रेमचंद ने, और आजादी के पश्चात परसाई जी ने लोकशिक्षण के लिए अतुलनीय काम दिया । परसाई जी की कथनी और करनी में अंतर नहीं था और वे अपनी बात बेबाकी से व्यक्त किया करते थे । पं. जवाहार लाल नेहरू के प्रशंसक होने के बावजूद उन्होंने नेहरू युग के मायावाद को तोड़ा एवं पंचवर्षीय योजनाओं से पनपने वाले भ्रष्टाचार की कड़ी आलोचना की । इस अवसर पर उपस्थित वरिष्ठ कथाकार एवं उपन्यासकार श्री तेजिन्दर ने परसाई जी को याद करते हुए कहा कि परसाई जी अपने साथ युवा लोगों को बड़ी सहजता में जोड़ लेते थे तथा वे लेखकीय आभा से काफी दूर रहा करते थे । उनके सानिध्य में लगातार सीखने को मिलता था । वरिष्ठ लेखक श्री अरूणकांत शुक्ल ने परसाई के निबंधों पर चर्चा करते हुए कहा कि परसाई जी धर्म और विज्ञान दोनों को कसौटी पर कसकर उसकी व्याख्या किया करते थे । श्री अरुणकांत ने कहा कि परसाई कहा करते थे कि धर्म और विज्ञान दोनो यदि गलत हाथों में पड़ जाएं तो मानव एवं मानवता दोनो खत्म होते हैं। इसके पश्चात श्री सुभाष मिश्र ने अपने विचार व्यक्त करते हुये कहा कि हालांकि परसाई जी ने कोई नाटक नहीं लिखा मगर आज देश भर में परसाई जी की रचनाओं के नाटय रूपांतरणों का ही मंचन सबसे यादा किया जा रहा है । वरिष्ठ समीक्षक श्री राजेन्द्र मिश्र ने परसाई जी के लेखन पर अपनी बात रखते हुये कहा कि परसाई जी के लेखन का केन्द्रिीय भाव दुख है मगर उन्होंने दुख को मुक्ति की भावना से जोड़ने का काम किया । उन्होंने कहा कि परसाई मानते हैं कि मुक्ति अकेले की नहीं होती बल्कि सबके साथ होती है । श्री मिश्र ने कहा कि परसाई व्यंगकार नहीं बल्कि समग्र रूप से एक उत्कृष्ठ रचनाकार थे जिन्होंने ठोस लेखन किया । उन्होंने कहा कि परसाई 3-4 शब्दों में एक पूरा वाक्य रच दिया करते थे जो एक अद्भुत कार्य है । अंत में अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रभाकर चौबे ने परसाई के समग्र लेखन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ''हरिशंकर परसाई भारत में राजनैतिक व्यंग्य के जनक थे , वे स्पष्ट रूप से एक व्यंग्यकार थे जिस पर पूरे हिन्दी साहित्य को गर्व है'', उन्होंने कहा कि परसाई के लेखन से पूरा समय झांकता है । श्री प्रभाकर चौबे ने कहा कि परसाई एक एक्टीविस्ट भी थे। वे सहज हास्य नहीं बल्कि गंभीर व्यंय लिखते थे जो भीतर तक घाव करता ङै । परसाई स्वयं कहा करते थे कि वे लेखक छोटे हैं मगर संकट बड़े हैं इस संदर्भ में श्री प्रभाकर चौबे ने कहा कि कोई भी सत्ता एक सीमा के पश्चात लेखकीय स्वतंत्रता बर्दाश्त नहीं करती। कार्यक्रम का संचालन प्रगतिशील लेखक संघ रायपुर के सचिव श्री जीवेश प्रभाकर ने किया एवं प्रगतिशील लेखक संघ रायपुर ईकाइ के अध्यक्ष श्री संजय शाम ने आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम में नगर के अनेक साहित्यकार रंगकर्मी एवं प्रबुद्धजन उपस्थित थे।
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Wednesday, August 27, 2014
परसाई जयंती
Thursday, August 21, 2014
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परसाई जयंती पर पढ़ें...
परसाई:लेखन से
झांकता समय --- प्रभाकर चौबे
कंधे श्रवणकुमार
के ----हरिशंकर परसाई
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Saturday, August 9, 2014
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आनेख / समसामयिक में
शिक्षा पर- राष्ट्रपति की
चिंता- प्रभाकर चौबे
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हिंसा
पर इसराइली और फिलस्तीनी औरतो की सोच
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कहानी -
अपनी भाषा से उदासीनता नहीं: ओरसिनी
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लंदन में नाटकघरों का सुनहरा युग
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इज़राइल
की बर्बरता के खिलाफ़ आवाज़ उठाना क्यों ज़रूरी है? –
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