Monday, May 25, 2020

घर लौटने की जिद्दी धुन- जीवेश चौबे

कौन जानता था कि बचपन में खेला गया छुक छुक गाड़ी का खेल एक दिन सचमुच उनकी रेल बनकर उन्हें घर पहुंचाने का सबब बन जाएगा । यदि सुरक्षित घर पहुंचा ही देता तो भी कम से कम खेल खेलने का लुफ्त आया समझ लेते, मगर रास्ते में यूं डब्बों का बिखर जाना एक उम्मीद का बिघर जाना है , एक संसार का उजड़ जाना है । इस तरह तो कभी रेल भी न बिखरी होगी जैसे उनकी ज़िंदगी बिखर गई । वो जिन्हें जीते जी रेल न मिल सकी उनकी लाशों को स्पेशल रेल से घर पहुंचाया गया । रेल का ये खेल सचमुच किसी को रास न आया ।
ज़िंदगीक्या किसी मुफ़लिस की क़बा है जिसमें
हर  घड़ी    दर्द    के   पैवंद   लगे   जाते  हैं
(फैज़ )
 फैज़ साहब का ये शेर आज घर लौटते लाखों मजदूरों की मजबूरियों को इस शिद्दत से बयां करता है मानो फटती बिवाईयों से अभी अभी फूट पड़ा हो । कभी बेबसी कभी रूदन के बीच अपने वतन , अपने घर लौटने की बेकररारी आहिस्ता आहिस्ता आक्रोश में तब्दील होती जा रही है ।
सुनहरे और उज्ज्जवल भविष्य का ख्वाब लिए जो महानगरों की ओर भागे चले आए थे उनके  ख्वाबों के ऐसे अंजाम का अंदाजा तो किसी को न था । उम्मीद और आकांक्षाओं की गगन छूती अट्टालिकाएं यूं  ताश के पत्तों की तरह बिखर जाएंगी किसी ने सोचा न था । लोगों के मकान  बनाते जो अपनी गृहस्थी संवारने में लगे रहे वो अचानक सड़कों पर बेघरबार होकर भटकने को मजबूर हो गए हैं।इमरान-उल-हक़ चौहान का एक शेर है-
ख़्वाब, उम्मीद, तमन्नाएँ, तअल्लुक़, रिश्ते
जान   ले  लेते  हैं आख़िर ये  सहारे  सारे
नवउदारवाद और क्रोनीकैपिटेलिस्म की मृगमरीचिका में इन महानगरों की ओर खिंचे आया ये आदम सैलाब आज फिर वहीं उन्हीं राहों पर आकर खड़ा हो गया है जहां से इसने अपनी यात्र शुरु की थी । घर से महानगर का सफर जब शुरु हुआ  तब भी ऐसा नहीं कि इनकी राहों में फूल ही फूल बिखरे हुए थे । राह तब भी कांटों भरी ही थी मगर तब सफर की इब्तदा थी, मन में जीवन संवारने का उत्साह था, ज़िंदगी को बेहतर बनाने का ऐसा जुनून कि ये अपने स्याह ख्वाबों को रंगीन बनाने , उन्हें सजाने की चाह में तमाम तकलीफों को हंसते हंसते सहे जाते रहे ।
अब फर्क इतना है कि सफ़र वापसी का है , घर वापसी का । उस घर की ओर वापसी का जिसे ये अपनी महत्वाकांक्षाओं के अथाह समुंदर में कहीं डुबा आए थे । आज जब ये समुन्दर इस भोथरे विकास की कीमत मांग रहा है । आखिर हर विकास की एक कीमत तो होती ही है । मगर यह कीमत चुकाता वही वर्ग है जो आज बदहवास सा अपने घर की ओर , अपनी जड़ो की ओर लौट रहा है ।  भूखे बदहवास लोगों की बस एक ज़िद  है, बस एक धुन ,एक  जिद्दी धुन सी सवार है और वो है घर वापसी की धुन। इस धुन के आगे सरकार के कारे राग दब गए हैं ।
जो लोग मौत को ज़ालिम क़रार देते हैं
ख़ुदा  मिलाए उन्हें ज़िंदगी के  मारों से
दूसरी ओर इनकी घर वापसी से पूंजीपतियों के कान खड़े हो गए हैं । एक भय , खौ़फ सा पसर गया है पूरे पूंजीपति वर्ग में और वो  है उनके अपने धंधे का अस्तित्व का । उन्होनें मजदूर के चेहरे का आक्रोश भांप लिया है , सरकार से और आम जनता से पहले ही । वे खौ़फज़दा हैं कि घर वापसी को बेचैन ये मजदूर हालात संभलने के बाद फिर वापस उनकी चाकरी में लौटेगा कि नहीं ? आनन फानन में ये पूंजीपति वर्ग सरकार पर दबाव डालकर इनकी घर वापसी के सारे रास्ते बंद कर देना चाहता है, लोकतंत्र के तमाम श्रम कानूनों को ध्वस्त कर तमाम हकों को खत्म कर शोषण का एक नया दौर शुरु कर देना चाहता है । नई सदी में अधिकारविहीन, बेबस लाचार कामगारों की नई जमात, बंधुआ मजदूरी की नई अत्याधुनिक  प्रथा शुरु करने को बेताब हो उठा है ये पूंजीपति वर्ग ।  और आश्चर्य तो ये है कि इस नई प्रथा के बंधुवाओं  में सिर्फ अनपढ़ गंवार देहाती मजदूर ही नहीं पढ़े लिखे ऊंची ऊंची डिग्रीधारी श्वेत धवल कपड़ों में सजे धजे कॉर्पोरेट के गुलाम भी बेआवाज़ शामिल हैं मगर वो खामोश हैं, उन्हें गुलामी की आदत सी पड़ चुकी है  । सुविधाओं के गुलाम हो चुके ये सफेदपोश आखिर कहां जायेंगे, वापस आ ही जायेंगे। अब मगर पेट से ज्यादा दिल पर गहरी चोट खाए इन मजदूरों को रोक पाना बहुत कठिन हो गया है । यहां तक कि सरकारें भी अब इनकी ज़िद से घबरा उठी है ।         
ये जान लीजिए मगर इस धरती पर वे ही बचेंगे जो बेधड़क, चिलचिलाती धूप में तपती धरती पर निकल पड़ते हैं नंगे पांव। और इस पृथ्वी को बचाएंगे भी ये ही। फिर चाहे वो घर से पलायन का वक़्त हो य ही घर वापसी का समय। कांधे पर अपनी अगली पीढी को ढोते सर पर पूरी गृहस्थी का बोझ लिए निकल पड़ने की हिम्मत इन्हीं में होती है।  साए की तरह बराबरी से चलती पत्नी का साथ भी होता है । हर बार , बार बार बस एक जुनून होता है। ये ही रचते हैं नया युग नया ज़माना। एयर कंडिशन्ड दबड़ों से निकलते हमारी छद्म संवेदनाओं के ट्वीट , सोशल मीडिया पर सामूहिक विलाप के तमाम ढोंग और मोबाइल के स्क्रीन पर  वर्जिश करती हमारी उंगलियां से जाहिर करती हमारी चिंताओं से कहीं ज्यादा इन्हीं फौलाद ढालते हाथों के बीच कहीं चुपचाप बूझते कांधे पर सवार उस अगली पीढी के हाथों में बचा रहेगा जीवन,इन्हीं के  इरादों में ,जूनून मे ।
चिंता न करें ये जल्द ही आयेंगे लौटकर वापस क्योंकि हमने अपने स्वार्थों के चलते उन्हें उनके घरों तक वो सुविधाएं वो जरूरतें मुहैया ही नहीं कराई हैं । तमाम संसाधनों पर जब तक हम कब्जा जमाए रहेंगे ये घर जाकर भी बार बार लौटेंगे, और हम अपनी क्रूर मुस्कुराहटों के साथ उनका स्वागत करते रहेंगे । जरा दम ले लें इस बार थकान तन की नहीं है मन की है , ज़रा इस थकान से राहत पा लेने दीजिए वे आयेंगे ज़रूर आयेंगे लौटकर। वंचितों की ये आवाजाही बदस्तूर जारी रहेगी जब तक वे सब कुछ जीतकर अपने कब्जा नहीं कर लेते। अभी तो वे उधेड़बुन में हैं, असमंजस में हैं…..
अब उस के शहर में ठहरें कि कूच कर जाएँ
‘फ़राज़’ आओ  सितारे  सफ़र  के देखते  हैं
( अहमद फराज़)

Friday, May 22, 2020

भूपेश बघेल की किसान न्याय योजना क्या कॉंग्रेस के लिए गेम चेंजर साबित होगी ? – जीवेश चौबे


मुख्यमंत्री भूपेश बघेल द्वारा राजीव गांधी की पुण्यतिथि 21 मई के दिन प्रदेश में किसानों के लिए ‘राजीव गांधी किसान
न्याय योजना’  लांच की गई है, जो राहुल गांधी की महत्वाकांक्षी ‘न्याय’ योजना का ही परिवर्तित रूप है। इस योजना का महत्वपूर्ण पहलू यह है कि ‘ न्याय ’ योजना के अनुरूप राशि सीधे किसानो के खातों में डाली जाएगी । उल्लेखनीय है कि विगत लोकसभा चुनाव के दौरान राहुल गांधी ने पूरे देश के गरीबों के ‘ न्याय ’ योजना का मसौदा सामने लाया था । कोरोना संकट के दौरान भी राहुल गांधी कई बार केंद्र से गरीबों और मजदूरों के खातों में सीधे पैसा डालने पर जोर देते रहे हैं। इस मुद्दे पर हाल के दिनों में राहुल गांधी प्रख्यात अर्थशास्त्री  रघुराम राजन और नोबेल विजेता अभिजीत बनर्जी से भी चर्चा कर चुके हैं। सवाल ये है कि क्या यह योजना राष्ट्रीय स्तर पर कॉंग्रेस के लिए गेम चेंजर साबित हो सकती है ?



मुख्यमंत्री भूपेश बघेल द्वारा राजीव गांधी की पुण्यतिथि 21 मई के दिन प्रदेश में किसानों के लिए ‘राजीव गांधी किसान न्याय योजना’  लांच की गई है । उल्लेखनीय है कि विगत लोकसभा चुनाव के दौरान राहुल गांधी ने पूरे देश के गरीबों के लिए ‘ न्यूनतम आय सहायता योजना’  यानि ‘ न्याय ’ योजना का मसौदा सामने लाया था जिसके तहत देश के 5 करोड़ गरीब परिवार यानि तकरीबन 20 फीसदी गरीब जनता को सालाना 72 हजार रुपये दिए जाने की योजना थी। महत्वपूर्ण बात यह थी कि इस योजना के अंतर्गत पैसे सीधे लाभान्वितों के खाते में डाले जाने का प्रावधान किया गया था। गौरतलब है कि कोरोना संकट के दौरान भी राहुल कई बार केंद्र से गरीबों और मजदूरों के खाते में सीधे पैसा डालने की बात कर चुके हैं। इस मुद्दे पर हाल के दिनों में राहुल गांधी प्रख्यात अर्थशास्त्री  रघुराम राजन और नोबेल विजेता अभिजीत बनर्जी से भी चर्चा कर चुके हैं।
राहुल गांधी अपने इस ड्रीम प्रोजेक्ट को लेकर काफी उत्साहित थे मगर चुनाव में हार की वजह से यह महत्वाकांक्षी योजना ठंडे बस्ते में चली गई थी ।  अब छत्तीसगढ़ में मुख्य मंत्री भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ में इस योजना को नए फॉर्मेट में ‘राजीव गांधी किसान न्याय योजना’ के नाम से किसानों के लिए लागू किया है ।  इस योजना के प्रति कॉंग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी के उत्साह का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि योजना के उदघाटन कार्यक्रम में वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिए कॉंग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी खुद शामिल हुए । मुख्य मंत्री भूपेश बघेल ने इस योजना को छत्तीसगढ़ के किसानों के लिए क्रियान्वयित कर राहुल गांधी की स्वप्निल परियोजना को साकार करने की दिशा में पहल की है।
राजीव गांधी किसान न्याय योजना किसानों को खेती-किसानी के लिए प्रोत्साहित करने की देश में अपने तरह की एक बड़ी योजना है। इस योजना के तहत सरकार किसानों को  अधिकतम 10 हजार रूपए प्रति एकड़ की दर से सहायता राशि देगी। इस योजना के  पहले चरण में राज्य के लगभग 19 लाख किसानों को चार किश्तों में तकरीबन 5700 करोड़ रुपए का लाभ मिलेगा ।  इस योजना का महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह राशि सीधे उनके खातों में हस्तांतरित की जाएगी ।
भूपेश बघेल द्वारा किसानो को सीधे लाभ पहुंचाना राहुल गांधी की न्याय योदना की सोच के तहत उठाया गया  एक क्रांतिकारी कदम है। इससे न सिर्फ किसानो को बल्कि उनके जरिए कोरोना संक्रमण के दौर में दम तोड़ते बाज़ार को भी राहत मिलेगी। खाते में पैसा होने से पूंजी प्रवाह में तेजी आएगी और बाजार को गति मिलेगी। इस योजना की दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आश्वस्त किया है कि आगे इस योजना में सभी तरह की फसल लेने वाले किसानों के साथ ही  योजना के द्वितीय चरण में राज्य के लाखों भूमिहीन कृषि मजदूरों को भी इस योजना का लाभ दिलाने  योजना के अंतर्गत शामिल किया जाएगा । मुख्यमंत्री बघेल ने इसके लिए विस्तृत कार्ययोजना तैयार करने के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में समिति भी गठित कर दी है। यह समिति दो माह में विस्तृत कार्ययोजना का प्रस्ताव तैयार कर प्रस्तुत करेगी।
भूमिहीन किसानो को शामिल करना एक महत्वपूर्ण पहल है । आज तक खेतिहर मजदूरों को किसी भी प्रकार की कृषि संबंधित योजना का लाभ नहीं मिलता रहा । भूमिहीन होकर मजदूर बना किसान बहुत ही बदतर परस्थितियों में जीने को मजबूर होता है ।  इन्हीं परिस्थितियों के चलते अधिकांश खेतिहर मजदूर पलायन का रास्ता अपनाते हैं ।  इस योजना में उनके लिए भी प्रावधान किया जाना निश्चित रूप से  खेतिहर मजदूरों की आर्थिक स्थिति सुधारने की दिशा में एक सकारात्मक कदम  है और अगर इस योजना का सही क्रियान्वयन किया गया तो यह योजना छत्तीसगढ़ से श्रमिकों का पलायन रोकने में भी कारगर साबित हो सकती है ।
सवाल यह है कि क्या भूपेश बघेल द्वारा लागू की गई  राहुल गांधी की न्याय योजना कांग्रेस के लिए मनरेगा की तरह लाभकारी साबित हो सकेगी ?  गौरतलब है कि  यूपीए शासनकाल के दौरान शुरू की गई मनरेगा योजना से कॉंग्रेस पार्टी को काफी लाभ हुआ था।  मनरेगा आज भी जारी है और कोरोना के कारण शहरों से गांव वापस लौटने वाले मजदूरों के लिए काफी मददगार साबित हो रही है और इसीलिए एक समय मनरेगा की कटु आलोचना करने वाले मोदी जी कोरोना संकट से निजात पाने मनरेगा के बजट में बढ़ोतरी करने को बाध्य हुए हैं ।  
राहुल गांधी कोरोना काल के पहले से ही मोदी सरकार को किसानों के मुद्दे पर लगातार घेरते रहे हैं । इस बात की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि यदि छत्तीसगढ़ में  इसके सकारात्मक परिणाम सामने आते हैं तो निश्चित रूप से राहुल गांधी  कांग्रेस  शासित अन्य राज्यों को  भी यह योजना लागू करने कह सकते हैं। किसानो का बड़ा वर्ग पहले से ही कांग्रेस का समर्थक माना जाता है। एक तरह से  कांग्रेस का वोट बैंक गरीब किसान ही रहे हैं तो निश्चित तौर पर किसान न्याय योजना की सफलता  पार्टी के लिए एक ठोस व महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है और कॉंग्रेस पार्टी के लिए संजीवनी का काम कर सकती है । भूपेश बघेल की पहल यदि कामयाब हो जाती है तो राहुल गांधी इस योजना की सफलता प्रचारित प्रसारित कर केंद्र सरकार को घेरने का प्रयास कर सकते हैं ।

सब कुछ मगर इस पर निर्भर करता है कि मुख्य मंत्री भूपेश बघेल छत्तीसगढ़ की लालफीताशाही और नौकरशाही को नियंत्रित कर वास्तविक धरातल पर इस महत्वाकांक्षी राजीव गांधी किसान  न्याय  योजना का कितना लाभ किसानो तक पहुंचाने में कामयाब हो पाते हैं।