Friday, December 28, 2018

मंत्री पद की लालसा, संवैधानिक दिक्कतें और जनमानस-- जीवेश चौबे




मुख्य मंत्री भूपेश बघेल ने केंद्र को चिट्ठी लिखकर मंत्रियों की संख्या बढ़ाने की मांग की है। मंत्रीमंडल का गठन एक मुख्य मंत्री का विशेषाधिकार होता है जिसे वह अपने विवेक, आपसी तालमेल, अनुभव व उपयोगिता के अनुसार व्यक्तियों को प्रदान करता है । मुख्य मंत्री  संविधान के तहत सद्इरादों से किए गए प्रावधानो से बंधे हुए हैं जिसका सभी को सम्मान करना चाहिए ।एक तो मंत्रियों की संख्या में बढ़ोतरी करना इतना आसान नहीं है  इसके अलावा जनता के पैसे का दुरुपयोग किया जाना किसी भी तरह जायज़ नही ठहराया जा सकता । मुख्य मंत्री के विशेषाधिकार को चुनौती देने और महत्वाकांक्षाओं के चलते स्वार्थी हो जाने की बजाय उनके साथ खड़ा होकर पार्टी को मजबूती प्रदान करना ज्यादा महत्वपूर्ण है ।
यह बात भी गौरतलब है कि चुने हुए जनप्रतिनिधियों की हर हरकतों पर जनता की बराबर नजर होती है । जनमानस पर पड़ने वाला प्रभाव काफी महत्वपूर्ण होता है जिसकी ओर चुनाव जीतने के बाद कम ही ध्यान दिया जाता है । यह तथ्य समझना जरूरी है कि जनता बड़ी उम्मीद व अपेक्षाओं से किसी भी पार्टी को सत्ता में लाती है, मगर पार्टी के अंतर्कलह का उसके मानस पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और उसे काफी निराशा होती है । विशेष रूप से छत्तीसगढ़ में जिस तरह हताश होकर जनता ने पूर्ववर्ती सरकार के प्रति आक्रोश व्यक्त करते हुए कॉंग्रेस को लगभग तीन चौथाई बहुमत से सत्ता सौंपी है उससे जन अपेक्षाओं के प्रति कॉंग्रेस की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है । कॉंग्रेस के सभी विजयी प्रत्याशियों के साथ ही उनके समर्थकों व अन्य कार्यकर्ताओं  को पदलोलुपता से ऊपर उठकर जन भावनाओं के प्रति संवेदनशील व जिम्मेदार होना होगा ।
  क्या हर जीता हुआ जन प्रतिनिधि मंत्री बनाया जा सकता है संविधान के 91 वें संशोधन के अनुसार मंत्री पद की संख्या सदन की कुल संख्या के 15 प्रतिशत से ज्यादा नही ही सकती । यह प्रावधान बहुत सोच समझकर जनता के पैसे की बर्बादी ,फिजूलखर्ची रोकने के साथ ही   सादगीपूर्ण प्रशासन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से लागू किया गया है । एक मंत्री के पीछे वेतन भत्तों के अतिरिक्त सुरक्षा मानकों व अन्य सुविधाओं पर सरकार पर काफी वित्तीय भार पड़ता है । 
 प्रश्न ये उठता है कि क्या जनता की सेवा सिर्फ मंत्री बनकर ही की जा सकती है? जनसेवा के लिए राजनीति में आने का दावा करने वाले सत्ता पाते ही क्यों मंत्रिपद के लिए जूतमपैजार की हद तक उतर जाते हैं । उल्लेखनीय है कि मौजूदा परिस्थितियों में सांसद व विधायक के लिए जनसेवा व जन  विकास कार्यों को अंजाम देने के उद्देश्य से प्रति वर्ष सांसद निधि व विधायक निधि का भी प्रावधान किया गया है। इस राशि को वे अपने स्वविवेक से जनहित के कार्यों में खर्च कर सकते हैं   मगर हाल ही में आई रिपोर्ट के अनुसार अधिकांश जन प्रतिनिधि इस राशि का उपयोग ही नही कर पाते और कई मामलों में तो यह राशि लेप्स भी हो जाती है   फिर  आखिर ऐसा क्या है कि हर विधायक मंत्री बनना चाहता है। निश्चित रूप से मंत्री के पास विशेषाधिकार व संसाधन एक विधायक से ज्यादा ही होते हैं मगर इन सबसे इतर सामंतवादी मानसिकता के चलते मंत्रिपद के रुतबे के साथ सायरन व लाल बत्ती लगी दसियों गाड़ियों के काफिले का आडम्बर ही ज्यादा आकर्षित करता है ।
यह बात गौरतलब है कि मौजूदा दौर में एक विधायक या सांसद पद के बिना खुद को उपेक्षित सा महसूस करता है । मंत्रिपद न मिलने की दशा में वह किसी मंडल या आयोग के शीर्ष पद पर आसीन होना चाहता है । आजकल उसे मलाईदार पद से परिभाषित किया जाने लगा है । सभी के मंत्री या अन्य पदों पर काबिज होने की अदम्य लालसा  विधायक  की राजनीति में आने मंशा पर सवाल खड़ा करती है । हालांकि हर कोई जन सेवा के नाम पर मंत्रिपद की मांग करता है मगर अब हर आम  मतदाता भी यह जानता व मानता है कि मंत्री पद अकूट कमाई का ज़रिया बन चुका है , कुछ अपवाद ज़रूर हो सकते हैं मगर अब यह साफ तौर पर देखा जा सकता है। हमारे आसपास ही ऐसे  व्यक्ति हैं जो चुने जाने से पहले  बहुत ही साधारण स्तर पर जीवन जी रहे होते हैं मगर मंत्री बनते ही रातों रात दौलत के अपार भंडार जमा कर लेते हैं ।
      उधर मध्य प्रदेश में भी मंत्री पद को लेकर घमासान मचा हुआ है। तीन राज्यों में से इन दो राज्यों , छत्तीसगढ़ व मध्य प्रदेश, में 15 साल बाद कांग्रेस सत्ता में लौटी है  । लम्बे समय के पश्चात सत्ता में लौटी कांग्रेस पार्टी में हर कोई मंत्री बनना चाहता है । महत्वाकांक्षाएं स्वाभाविक हैं मगर पार्टी अनुशासन का पालन और जनभावनाओं का सम्मान करना ज्यादा ज़रूरी है। विशेष रूप से मध्य प्रदेश जैसे राज्य में जहां बहुमत का अंतर बहुत ही कम है, अपने नीहित स्वार्थ के चलते पार्टी की साख व संभावनाओं को दांव पर लगाना अनुचित तो है ही साथ ही यह भी ध्यान रखना होगा कि जरा सी चूक पार्टी कार्यकर्ताओं की बरसों की मेहनत से हासिल उपलब्धियों को संकट में डाल सकती है ।

जीवेश चौबे

Friday, December 21, 2018

असीमित अपेक्षाओं और वायदों के अमल की चुनौतियों की पहली पायदान पर ख़रे उतरे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल

देश के पाँच राज्यों के चुनाव संपन्न हुए । इन पाँच प्रदेशों में हर प्रान्त में सत्ता परिवर्तन
हुआ । यही हमारे लोकतंत्र की खूबी है । विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में आज भी जनता की शक्ति सलामत है जो हमारे लोकतंत्र की जडों को लगातार मजबूत बनाए हुए है। 70 साल की आजादी में हमारे देश में कभी भी लोकतंत्र हारा नहीं, जब कभी भी लोकतंत्र पर खतरा मंडराता सा लगा, जनता ने अपनी बुध्दिमानी व समझदारी का परिचय देते हुए देश में लोकतंत्र को मजबूत बनाने में अपनी महती भूमिका व जिम्मेदारी निभाई ।
       इन पाँच प्रदेशों में एक हमारा छत्तीसगढ भी है । यहाँ भी सत्ता परिवर्तन हुआ । विगत 3 चुनाव जीतकर 15 वर्षों से सत्ता में रही भारतीय जनता पार्टी इस बार बुरी तरह परास्त होकर विपक्ष में चली गई ।
इसके साथ ही लम्बे समय से संघर्ष कर रही कांग्रेस इस बार 90 में से 68 सीटें लेकर लगभग 3 चौथाई बहुमत से सत्ता हासिल करने में कामयाब हुई । कांग्रेस की जीत में महती भूमिका निभाने वाले युवा व जुझारू नेता श्री भूपेश बघेल मुख्य मंत्री बने । युवा होते प्रदेश की कमान एक युवा मुख्यमंत्री को दिए जाने से प्रदेश की जनता में हर्ष व उत्साह की लहर व्याप्त है । इस हर्ष व उत्साह की लहरों में जहां एक ओर असीमित अपेक्षाएँ व उम्मीदे हिलोरें ले रही हैं वहीं गए वादों व जनहित के मुद्दों पर अविलंब अमल की चुनौतियां भी सामने हैं ।नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने पदभार ग्रहण करते ही अपने वादे के मुताबिक महज एक घंटे के भीतर किसानों का कर्ज माफ करते हुए अपने स्पष्ट दृष्टिकोण, प्रतिबध्द इरादों व सकारात्मक कार्यशैली का परिचय दे दिया है। मुख्यमंत्री की इस कार्यशैली से जनता काफी उत्साहित हुई व जनता में सरकार के प्रति विश्वास कायम हुआ है।
अब से पहले तक जनता के मन में यही बात घर किए बैठी थी कि पार्टियाँ चुनाव में जो वादे करती हैं वो खोखले व वोट पाने के लिये ही होते हैं। इस बार हमारे प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने शपथ ग्रहण के पश्चात पहली बैठक में अपने प्रमुख वादों पर तत्काल अमल कर पुराने मिथक व भ्रम को तोड़ा है । कहा जा सकता है कि जनता की असीमित अपेक्षाओं और अपने वायदों के अमल की सख्त चुनौतियों की पहली पायदान मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल सफलतापूर्वक पार कर गए हैं । उनकी इस कार्यशैली से जनता में ये उम्मीद बढ़ी है कि वे आगे भी सभी वायदों पर इसी तरह प्रतिबध्द होकर अमल करेंगे। छत्तीसगढ़ ही नहीं इस बार कांग्रेस ने जीते हुए सभी राज्यों में प्रमुख वादों पर तत्काल अमल की नई कार्यशैली का आगाज़ किया है जिसका जनमानस पर काफी सकारात्मक असर हो रहा है ।


किसानों के कर्ज माफ करने के पश्चात मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल द्वारा दो टूक शब्दों में रिटायर्ड कर्मियों की संविदा नियुक्ति एवं आउट सोर्सिंग  बंद किये जाने  की मंशा ने बेरोजगार युवाओं में उम्मीद की नई किरण जगाई है । बेरोजगारी हमारे प्रदेश की बहुत बडी समस्या है। शिक्षित बेरोजगारीं की संख्या दिन ब दिन बढती जा रही है । विगत वर्षों में हमारे प्रदेश में निजि शिक्षण संस्थान तो तेजी से बढे मगर में शिक्षा की गुणवत्ता पर कोई ध्यान नहीं दिया गया । यह आज एक  एक गंभीर समस्या बनकर प्रदेश के पालकों की चिंता का प्रमुख कारण बन गया है । जहां एक ओर शिक्षा की निम्न गुणवत्ता के चलते प्रदेश के प्रतिभावान व मेधावी छात्र दूसरे प्रदेशों में अध्ययन के लिए पलायन को मजबूर हो रहे हैं वहीं  उद्योग व्यापार में यथोचित निवेश न हो पाने के कारण रोजगार की दिक्कते भी उतनी ही तेजी से बढती गई हैं, जिससे शिक्षित युवा वर्ग भी पलायन को मजबूर हुए हैं ।             उच्च शिक्षा प्राप्त मेहनती, सक्षम व समर्थ युवा वर्ग रोजगार की तलाश में अपने गृह प्रदेश से दूर जाकर नौकरी करने को मजबूर है।
युवा वर्ग को ये उम्मीद है कि प्रदेश के नए मुखिया, प्रदेश में ही रोजगार के नए अवसरों के सृजन हेतु ठोस योजना पर गंभीरता से विचार कर बौध्दिक पलायन पर विराम लगाने में कामयाब होंगे।  हम भी उम्मीद करते हैं हमारे नव निर्वाचित मुख्यमंत्री युवा वर्ग की इस समस्या को दूर करने के लिये सुनियोजित वर्क प्लान लायेंगे। हम आशा करते हैं कि विभिन्न मुद्दों को लेकर लगातार संघर्ष करते हुए आज प्रचंड बहुमत से मुख्य मंत्री पद पर पहुंचे श्री भूपेश बघेल युवाओं के साथ ही प्रदेश की आम जनता की अपेक्षाओं व उम्मीदों पर खरे उतरेंगे।  


जीवेश चौबे