Monday, April 27, 2020

कोरोना काल में पूछना ताउ चाचा के हाल – जीवेश चौबे

कोरोना का कहर है और देश  क्या पूरे संसार में बहुतई मारा मारी मची पड़ी है । ऐसा समय है कि जान पहचान वाले क्या दोस्त यार मां बाप- बेटे- बेटी से लेकर प्रेमी प्रेमिका तक मिल नहीं पा रहे । अब विदेशियों का क्या वो तो पहले ही परिवार से दूर रहते हैं, तकलीफ तो हम सनातनी सभ्यता के वाहक , आदिकाल से कुट्टम कुटाई करते हुए भी संयुक्त परिवार में रह रहे भारतीय परिवार को हो गई । अब कोरोना को क्या पता हमारे संस्कार ? वो तो मुआ चीन से निकला और पसर गया । अब हम तो पहले भी व्हेन सांग को सर पे बिठा चुके हैं और इसी परंपरा का निर्वाहन करते हुए शी जिंग पिंग को झूला झुला बैठे। अच्छा सिला दिया तूने मेरे प्यार का... की तर्ज पर मुआ चीन पालना का बदला कोरोना से निकालेगा ये तो किसी ने नहीं सोचा था । चीनी हिन्दी भाई भाई बोल के पहले नेहरू धोखा खाए अब  नेहरू को गरियाने वालों को भी नेहरू की तरह फिर ये सिला मिला कहने लगे हैं । मगर हमारे संस्कार और परंपरा देखिए कि  हम तो अतिथि देवो भव के संस्कार से नहाए , अंकल ट्रंप को भी  मेहमान बनाकर गर्व महसूस करने से नहीं चूके ।
इसी परंपरा के चलते सब अपने अपने नाते रिश्तेदारों के हाल पूछ रहे हैं, सरकार भी कह रही है बुजुर्गों का ध्यान रखें । अब लॉक डाउन करके घर बिठा देगे तो कोई क्या करेगा । हमने भी सरकार का कहा मान ताउ चाचा को फोन लगा दिया ।  हमारे ताउ चाचा , हैं तो चाचा मगर बचपन से हम सब उन्हें ताऊ चाचा कहते रहे ,बस ये समझ लो जरा सा हेरफेर है जीडीपी की तरह। बहरहाल ताऊ चाचा के हाल जानने का मन किया, जिनसे पता नही कितने बरस से हम मिले तो नहीं मगर कभी कभार मुलाकात होई जाती है । ठेठ देसी किसम के 70 पार के ताउ चाचा । सेवानिवृत्त शिक्षक, शिक्षक क्या पूरी शिक्षा व्यवस्था हैं । हमारे यहां जैसे शिक्षा मिले न मिले बच्चे को व्यवस्था का ज्ञान तो मिल ही जाता है वैसई ताऊ चाचा मिले न मिले ज्ञान जरूर मिल जाता है । 70 साल में शिक्षा तो देशी, अंग्रेजी, मिश्रित न जाने कितनी बदली मगर शिक्षा व्यवस्था नहीं बदली, वैसई ताऊ चाचा हैं ।  70 सालों में सरकार भी बदलती रही मगर व्यवस्था की तरह ताऊ चाचा आज तक नहीं बदले हैं ।
जैसई मोबाइल लगाया बड़े भैया ने उठाया, जाहिर है मोबाइल तो भैया के ही पास होता है।  जैसे कोई सामान पत्नी को दिलाना न हो तो कैसे उलट पुलट के रख देने का मन करता है वैसई भैया से हां हूं मे बात करके ताउ चाचा से बात करने की सोच रहे थे मगर भैया ताउ के अवतार ही हैं, जैसी पूंजी वैसा उत्पाद, बात खत्म ही नहीं कर रहे थे । पता नहीं कहां कहां की पंचायत ले बैठे, क्या बताएं छुट्टन जिज्जी परेशान है, जीजा उनको अभी भी मारते हैं..तुम्हारी भौजी के पांव का दर्द अब हमारे सर का दर्द हो गया है..बेटा भक्त हो गया है, बेटी के पांव घर पर नहीं टिकते... अच्छा वो छोड़ो तुम बताओ... तुम्हारी सास कैसी हैं, ससुर को अटैक आया था क्या, ऐसी खबर मिली थी, साले का प्रमोशन हो गया कि नहीं। याने एक तो फोन करते नहीं जब हमने किया तो सारी पंचायत करने लगे । जैसे नेताजी पत्रकार वार्ता में सवालों का जवाब न दें बस अपनी हीबात करते रहें । वैसे भी आजकल सब मन की बात ही करने लगे हैं , दूसरे की सुनते नहीं बस अपनी सुनाए पड़े रहते हैं ।
अच्छा बताओ बहू कैसी है...अब हमसे रहा नहीं गया, हमने कहा ठीक ही है हम कोई थोड़े उसको मारते हैं...जैसे सत्ताधारी पार्टी के विधायक पाला बदल लें तो नेता कैसे खिसिया जाता है वैसई भैया खिसिया गए और ज़रा सी देर को मुंह बंद हुआ, बस हमने तुरत कहा- ताउ चाचा हैं ? खिसियाए भैया ने सारी भड़ास निकालकर कहा- वो कहां जायेंगे, लो कर लो बात। हमने राहत की सांस ली मानो हाई कमान से मिलने का टाइम मिल गया हो ।


कैसे हो ताउ चाचा..मैने जैसे ही पूछा ,  वो फट पड़े ।
तुमको क्या लगता है... ? जवाब की जगह प्रश्न दाग दिया ।
नहीं, याने तबियत वबियत ठीक है न, मैने सफाई दी।
हां हं.. हमें क्या होना है.. एकदम फिट हैं...
वो तो हैई ताउ चाचा, मगर क्या है न कोरोना फैला है, सरकार कह रही है बुजुर्गों का ध्यान रखें ।
हम सब समझते हैं बेटा... तुम्हारे चाचा हैं .. एक ये हैं हमारे पुत्र, रोज पूछते हैं बबा बुखार तो नहीं है न, मोहल्ले वाले अलग पूछ रहे हैं । रोज बुढ़उ बुढ़उ कहने वाले ये बुजुर्गों का ख्याल रख रहे हैं या रास्ता देख रहे हैं जाने का । मगर जान लो हमें कुछ नहीं होना।
मैने कहा, नहीं ताउ ऐसा नहीं, हम तो सरकार की बात मानकर आपके हालचाल पूछ ले रहे हैं ।
अरे बेटा मेरा क्या हाल पूछते हो तुम सब । देश का हाल देखो मेरा छोड़ो, ताऊ चाचा भावुक हो गए,उनका शिक्षक जाग गया...बोले, तुम लोगों को तो ये ही नहीं पता कि इन 70 साल में क्या, कौन कितने कमजोर हो गए, किसकी सेहत बिगड़ गई , कौन कोरेन्टाइन में चला गया , रखना है तो उनका ख्याल रखो। मुझे छोड़ो, ये दम तोड़ रहे हैं इनकी सेहत का ख्याल करो ।
 मैं अवाक रह गया। एक बार फिर ताऊ चाचा का ज्ञान मिल गया । सचमुच ये सरकारें व्यवस्थाओं,संस्थाओं की चिंता से दूर और बेखबर कर आत्मकेन्द्रित बना देती हैं। पूंजीवादी सरकारें राहत काल में आदमी को व्यक्ति केन्द्रित और संकटकाल में समाजोन्मुखी बना देती हैं ।  सड़कों पर भटकते लाखों कामगारों , समाज के गरीब तबकों बुजुर्गों बच्चों सबका ख्याल समाज रखे। सरकार न तो पहले कुछ करे न बाद में, सारी जिम्मेदारी जनता  पर डाल देती है । आज 70 पार के सभी आइसोलेशन में है, देखिए जनता कब ये लॉक डॉउन खोलती है । 

Sunday, April 12, 2020

मुख्य मंत्री को हर जमात के साथ होना चाहिए - जीवेश चौबे

निश्चित रूप से प्रांत के मुख्य मंत्री को हर समुदाय या जमात और जमातियों  के साथ होना ही चाहिए, हां ये ज़रूर है कि वो किसी भी समुदाय के उत्पातियों  के साथ नहीं होगा। और ये भी सच है कि हर समुदाय और जमात में उत्पाती होते ही हैं। इन उत्पतियो को कानून के अनुसार समान रूप से सजा भी देनी चाहिए ।
ये बात इसलिए कही जा रही है कि छत्तीसगढ़ में विपक्षी दल भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और अन्य नेताओं ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से सीधे सवाल कर डाला कि वे स्पष्ट करें कि वे तब्लीगी जमातियों के साथ हैं या खिलाफ। छत्तीसगढ़ में मुख्य मंत्री भूपेश बघेल के प्रयासों की बदौलत जहां महामारी कोरोना पर अब तक काफी हद तक नियंत्रण रखने में कामयाबी हासिल की है ,वहीं अब छत्तीसगढ़ में भी तबलीगी जमात को लेकर राजनीति शुरु हो गई है ।
   इस घोर संकट के समय इस तरह के राजनीतिक वक्तव्य गैरजिम्मेदाराना ही नहीं विपक्ष की गरिमा के प्रतिकूल भी है। एक ओर प्रधानमंत्री स्वयं पूरे देश के के तमाम राज्यों के साथ समन्वय व तालमेल बिठा कर आपदा से मिलजुलकर निपटने की अपील और प्रयास कर रहे हैं वहीं छत्तीसगढ़ में उनकी ही पार्टी के नेताओं द्वारा इस तरह की बयानबाजी उचित नहीं लगती । इन आपातकालीन परिस्थितियों में इस तरह की राजनीति एक तो विपक्ष के असहयोगात्मक रवैये को उजागर करती है वहीं दूसरी ओर विपक्ष की सतही राजनीतिक सोच को भी प्रदर्शित करती है।
निश्चित रूप से ऐसे कठिन समय में तमाम विरोधाभासों के बावजूद प्रदेश के सभी वर्ग,संप्रदाय समाज और यहां तक कि प्रत्येक नागरिक के साथ खड़ा होना ही किसी भी मुख्य मंत्री का दायित्व है । ऐसे मुश्किल वक्त में तमाम वैचारिक मतभेदों के बावजूद क्या देश के प्रधान मंत्री देश के नागरिकों के साथ भेदभाव बरत सकते हैं , निश्चित रूप से ऐसी उम्मीद क्या कल्पना भी नहीं की जा सकती । इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि ऐसी विनाशकारी आपदा के समय समाज के प्रति सभी दोषियों को सजा दी जानी चाहिए मगर भेदभावों से ऊपर उठकर सभी के साथ समान रूप से संविधान व कानून के अनुसार कार्यवाही की जानी चाहिए ।
पूरे देश में  कोरोना माहामारी के कठिन दौर में कोरोना से ज्यादा मारामारी सांप्रदायिक वायरस को लेकर मची हुई है । पूरे देश में महामारी अब कोरोना से हटकर सांप्रदायिक दोषारोपण और नफरत फैलाने पर केन्द्रित होती जा रही है । तमाम न्यूज चैनल इसे और हवा देने में सबसे आगे हैं। यह बात भी गौरतलब है कि तबलीगी जमात के बहाने तमाम न्यूज़ चैनलों द्वारा पूरे मुस्लिम समाज को दोषी ठहराने की बढ़ती प्रवृत्ति और पूरे धर्म को निशाना बनाकर वैमलस्य फैलाए जाने को ध्यान में रखते हुए देर से ही सही मगर केन्द्र सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक एडवायसरी जारी करी जिसमें  कोरोना को लेकर किसा भी व्यक्ति विशेष, समुदाय , संप्रदाय, धर्म, जाति या अन्य पूर्वाग्रहित टिप्पणी करने पर प्रतिबंध लगा दिया है । कुछ चौनलों को इस संबंध में माफी तक मांगनी पड़ी है । स्वास्थ्य मंत्रालय के अलावा न्यायालय ने भी संप्रदाय विशेष के खिलाफ जारी नफरत भरे कैंपेन को बंद करने के निर्देश दिए हैं । निश्चित रूप से तबलीगी जमात ने गैरज़िम्मेदाराना हरकत की है मगर इसमें केन्द्रीय प्रशासन और दिल्ली सरकार की भी लापरवाही से इनकार नहीं किया जा सकता । अब जबकि जो होना था हो चुका तब लकीर पीटने और कोयला घिसने की बजाय इस पर काबू पाने की चुनौतियों से मिलकर जूझना होगा ।
राजनैतिक बयानबाजियों के साथ ही प्रशासनिक व न्याययिक टिप्पणियों व आदेशों से भी  छत्तीसगढ़ की आम जनता के बीच संदेह व दुराग्रह को बल मिला है । एक ओर छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने कोरोना को लेकर सिर्फ तबलीगी जमात से जुड़े तमाम लोगों की जानकारी व टेस्ट जल्द से जल्द करवाने के लिए राज्य सरकार को निर्देश जारी किए । दूसरी ओर प्रदेश के राजनांदगांव जिला कलेक्टर ने  एक कड़ा आदेश जारी कर दिया कि पहचान छिपाने वाले सिर्फ तब्लीगी जमात से संबंध रखने वालों के खिलाफ आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत  तो कार्रवाई की ही जाएगी, साथ ही यदि उसके संपर्क में आने से किसी व्यक्ति की मौत होती है तो उसके खिलाफ धारा 302 के तहत हत्या का मामला दर्ज किया जाएगा। हालात बेशक नाज़ुक और विस्फोटक हैं मगर क्या हाई कोर्ट और राजनांदगांव के कलेक्टर के आदेश सिर्फ तबलीगी जमात को लेकर दिया जाना उचित है ? अन्य वर्ग, समुदाय के लोग जो जानकारियां छुपाएं उन पर क्या इस आदेश के तहत कार्यवाही नहीं की जाएगी ? गौरतलब है कि महाराष्ट्र हाई कोर्ट की बैंच ने हाल ही में  कोरोना को लेकर धारा 51 ए का पाठ पढ़ाते हुए स्पष्ट  व  सख्त टिप्पणी की है कि सभी समरसता ,भातृत्व एवं समानता की भावना से काम करें, किसी भी जाति, धर्म वर्ग वर्ण व भाषा के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता।
उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश के आईएएस अफसर ने भी जानकारी छुपाने का जुर्म किया जिसके चलते उनके परिवार सहित 100 से ज्यादा लोग प्रभावित हो गए , क्या इनका जुर्म तब्लीगी जमातियों के जुर्म से अलग या कम कहा जा सकता है । इस तरह किसी भी धर्म जाति समुदाय संप्रदाय वर्ण या वर्ग के साथ न्यायिक भेदभाव संविधान की मूल भावनाओं के खिलाफ है । रायपुर में भी प्रशासन ने स्पष्ट किया है कि कई लोग विदेश से वापस आकर जानकारी छुपा रहे हैं और लगभग 76 लोग गायब हैं जिनकी तलाश जारी है । इनमें तबलीगी के साथ अन्य जमात के लोग भी होंगे तो क्या इनके लिए अलग अलग धाराएं लगाई जायेंगी?

 इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि दोषियों पर कड़ी कार्यवाही की जानी चाहिए । मगर इसमें सामुदायिक या सांप्रदायिक भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए बल्कि सभी दोषियों पर समान रूप से संविधान व कानून के अनुसार कार्यवाही की जानी चाहिए । हाई कोर्ट के निर्देशों के मद्दे नज़र मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कुछ विशेष पत्रकारों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग कर स्थिति साफ करने की कोशिश की और तब्लीगी जमात से जुड़े प्रकरणों की जानकारी से अवगत कराया । मगर मुख्य मंत्री को सफाई देने की बजाय सभी नागरिकों के साथ खड़े रहने की बात दृढ़ता से कहनी होगी । एक छोटे से तबके के चलते पूरे धर्म को निशाना बनाए जाने की पृवृत्ति के खिलाफ कम से कम छत्तीसगढ़ में पूरी ताकत व दृढ़ता से खड़े होकर इस सांप्रदायिक महामारी को छत्तीसगढ़ में फैलने से रोकना होगा।

Monday, April 6, 2020

छत्तीसगढ़ में लॉक डॉउनः प्रदेश हित में सोच विचारकर स्वतंत्र फैसला लें मुख्यमंत्री – जीवेश चौबे

सारा विश्व कोरोना महामारी के चलते जिंदगी और मौत की सबसे कठिन लड़ाई लड़ रहा है। विश्व की सारी सरकारें अपने इस भयंकर महाहारी से मुकाबला करने पूरी ताकत से जूझ रही हैं। छत्तीसगढ़ में भी इस महामारी की दस्तक एकदम शुरुवाती दौर में ही सुनाई दे गई थी । मुख्य मंत्री भूपेश बघेल ने एकदम पहली दस्तक के साथ ही एहतियात के लिए कमर कस ली । पहले पॉजिटिव केस मिलने के तत्काल बाद ही देश में लॉक डाउन होने के लगभग दो दिन पूर्व ही प्रदेश में सबसे पहले लॉक डॉउन किया गया । विगत 2 हफ्ते से पूरा देश लॉक डॉउन में है । इस बात पर गौर करना होगा कि छत्तीसगढ़ में स्थानीय स्तर पर सामाजिक दूरी बनाए ऱखने के कड़े आदेश जारी कर दिए गए थे। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की सकारात्मक सोच और एम्स की पूरी टीम के साथ बेहतर तालमेल व  सामंजस्य बनाकर ठोस योजना के साथ काम किया गया । लगातार मॉनिटरिंग का ही परिणाम है कि  आज छत्तीसगढ़ में 80 प्रतिशत कोरोना संक्रमित ठीक होकर घर जा चुके हैं । शुरुवाती एहतियात के चलते छत्तीसगढ़ में कोरोना का फैलाव काफी हद तक सीमित कर दिया गया । इसी का परिणाम है कि आज देश में छत्तीसगढ़ प्रथम 10 राज्यों में शामिल हुआ है ।
सभी विशेषज्ञ और जानकार सोसल डिस्टैंस यानि सामाजिक दूरी को ही कोरोना से बचने का अब तक सबसे बेहतर व कारगर उपाय बता रहे हैं ।  इसके लिए ही पूरे देश में लॉक डॉउन किया गया है और छत्तीसगढ़ में भी इस दिशा में काफी सराहनीय क्रियान्वयन किया गया ।  इसके  सकारात्मक परिणाम भी सामने आए हैं और संक्रमण के फैलाव पर काफी हद तक काबू पाने में सफलता मिली है । इन सबके बावजूद अभी खतरा टल गया ऐसा नहीं माना जा सकता। विश्व स्वास्थ्य संगठन के निर्देशों के मुताबिक संक्रमण के प्रभाव को खत्म करने में अभी एक लम्बा वक्त लगेगा । इस बीच पूरे विश्व में सामाजिक दूरी पर गंभीरता से लगातार अमल करने पर जोर दिया जा रहा है।
एम्स के डायरेक्टर ने हाल ही में चेतावनी दी है कि अब और ज्यादा सावधानी की जरूरत है । उनके अनुसार भारत में कोरोना का संक्रमण एक सरीखा का नहीं है । अलग अलग इलाकों में अलग अलग प्रभाव देखने में आ रहा है । उनके अनुसार जिन राज्यों में सोशल डिस्टैंस पर सख्ती से अमल किया जा रहा है वहां बेहतर परिणाम मिल रहे हैं । मुख्य मंत्री भूपेश बघेल के प्रयासों का ही परिणाम है कि छत्तीसगढ़ में सामाजिक दूरी  पर कड़ाई से अमल कर प्रदेश में इस महामारी का फैलाव रोकने में बहुत बड़ी कामयाबी हासिल हुई है ।  अभी 14 अप्रैल तक पूरे प्रदेश में परिस्थितियों का अवलोकन कर आगे की रणनीति तय की जाएगी । लॉक डॉउन खोलने के सुझावों पर राष्ट्रीय स्तर पर विचार किए जा रहे हैं। विशेषज्ञों की राय पर ही इन सुझावों पर अमल किया जाएगा । सवाल ये है कि क्या 14 तारीख के बाद लॉक डॉउन एकदम से खोल दिया जाना चाहिए ?  यह एक यक्ष प्रश्न है ।
 मुख्य मंत्री भूपेश बघेल ने लॉक डॉउन के पश्चात संभावित खतरों एवं आशंकाओं के मद्देनज़र प्रधानमंत्री को हाल ही में ख़त लिखकर अपनी चिंता से अवगत कराया है ।  यह बात भी ध्यान में रखनी है कि मुख्य मंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व व मार्गदर्शन में तमाम डॉक्टरों , मेडिकल पैरा मेडिकल, पुलिस सामाजिक संस्थानो एवं जमीनी कार्कर्ताओं के अथक प्रयासों से हासिल न्यूनतम संक्रमण फैलाव को जरा सी चूक से खो देना उचित नहीं होगा। निश्चित रूप से यह एक बड़ी चुनौती है । चुनौती सिर्फ सामाजिक नहीं बल्कि आर्थिक व सामुदायिक भी है ।
राज्य के सीमित संसाधनो के बल पर क्या इससे निपटा जा सकता है यह विचारणीय है । यह बात गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ ने सारे उपाय अपने ही संसाधनों से किए । केन्द्र सरकार से आर्थिक सहायता की उम्मीदें पूरी नहीं हो सकीं और न ही केन्द्र से अपेक्षित मदद मिल सकी । तमाम वित्तीय कठिनाइयों के बावजूद मुख्य मंत्री भूपेश बघेल राज्य के संसाधनो के भरोसे ही इस महामारी के खिलाफ जंग जारी रखे हुए हैं । इन तमाम विपरीत परिस्थितियों के बीच अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है । लॉक डॉउन के चलते प्रदेश में कामकाज बंद पड़ गए हैं । इसके चलते किसानों, मजदूरों के सामने जीवन यापन का संकट खड़ा हो गया है वहीं उद्योग व्यापार भी ठप्प पड़ गया है । मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इस गंभीर संकट को ध्यान में रखते हुए सभी वर्गों के लिए काफी राहत पैकेज की घोषणा की । साथ ही मैदानी स्तर पर भी मजदूरों व अन्य विस्थापितों को पलायन से बचाते हुए आश्रय और उनके भोजन पानी की व्यवस्था की । दूसरी ओर आर्थिक तंगी से जूझ रहे उद्योग, व्यापार काम धंधे सभी क्षेत्रों से जुड़े लाखों परिवार और आम आदमी के लिए ये कदम अत्यंत कष्टकारक हो सकते हैं  । इस स्थिति के लिए एक ठोस नीति बनानी होगी । केन्द्र सरकार से अपने हिस्से की बकाया राशि के साथ ही आपातकालीन परिस्थिति के लिए आर्थिक सहयोग भी ज़रूरी होगा ।

मुख्य मंत्री भूपेश बघेल के प्रयासों का ही परिणाम है कि छत्तीसगढ़ में  इस महामारी का फैलाव रोकने में बहुत बड़ी कामयाबी हासिल हुई है ।  इस उपलब्धि को कायम रखने व आपदा के विस्तार को रोकने के लिए छत्तीसगढ़ में 14 अप्रैल के बाद संभव हो तो एक दो हफ्ते तक लॉक डॉउन बहुत सीमित व नियंत्रित उपायों के अंतर्गत खोलना ही उचित प्रतीत होता है  । राज्य की नाकेबंदी भी जारी रखनी होगी । बाहर के प्रदेशों से किसी भी तरह की आवाजाही पर पूरी तरह रोक भी जारी रखनी होगी । मुख्य मंत्री से यह अपेक्षा है कि अंतर जिला  और यहां तक कि नगरों व कस्बों के बीच भी आवाजाही पर कड़ाई से प्रतिबंध जारी रखा जाना चाहिए  जिससे सामाजिक दूरी के जरिए अभी तक हासिल उपलब्धि बाधित न हो और आगामी दिनों में जल्द ही संक्रमण का खतरा लगभग पूरी तरह समाप्त किया जा सके । मुख्यमंत्री को इन सभी संभावनाओं और आपदा की आशंकाओं को ध्यान में रखकर प्रदेश हित में जनहित में सोच समझकर कदम उठाने होंगे ।

Sunday, April 5, 2020

गज़ल ( कोरोना के दौर में ) -


लोग भी न जाने क्या क्या याद अब कने लगे हैं
मौत की आहट से देखो पल भर में ही डरने लगे हैं

तान रख्खे थे जिन्होंने ख्वाबों ख्वाहिश के महल
एक ही झटके में देख वो कैसे दरकने लगे हैं

गठरी उम्मीदों की लेकर जहां आए गावों से हुजूम
वो शहर अपने ही मुसलसल बोझ से ढहने लगे हैं

एक बेहतर ज़िदगी का ख्वाब लेकर आए थे जहां
रुसवा होके वो वहां से बदहवास निकलने लगे हैं

बोझ सर पे लेके जो सजडकों पे पैदल दीखते हैं
लोग उनकी बेबसी को अय्याशियां कहने लगे हैं

पांव के छालों से उनके फूटते दरिया से देख
सख्त चट्टानों से भी झरने फूटकर बहने लगे हैं

जिब्बू ये मंज़र बेबसी का और ये खामोश लब
ये सब हमारी नाकामियों की दास्तां कहने लगे हैं

जिब्बू रायपुरिया