Thursday, January 30, 2014

राहुल गांधी के बहाने

राहुल गांधी के बहाने
जीवेश प्रभाकर

लोकसभा की आहट के साथ ही कॉंग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी का देश के विभन्न क्षेत्रों में दौरा किया जा रहा है ।एक नए तेवर और योजना के साथ वे जगह जगह चौपाल लगा रहे हैं और अपने कार्यकर्ताओं से रूबरू भी हो रहे हैं । हालांकि काफी देर से इसे शुरु किया गया मगर यह काफी कारगर साबित हो सकता है । उल्लेखनीय है कि हाल ही में राहुल गांधी ने लगभग एक दशक के पश्चात एक साक्षात्कार दिया था । यह साक्षात्कार काफी चर्चा में है । देखा जाए तो यह मोदी के लिए एक चुनौती भी है मगर इसे इस रूप में देखने की बजाय यदि ये कहा जाए कि इस साक्षात्कार से राहुल एक नए रूप में सामने आए हैं तो गलत नहीं होगा । कुछ विवादित मुद्दों पर उनके जवाब से बवाल जरूर मचा हुआ है मगर आज की राजनीति में ऐसे विवाद ही चर्चा में रखते हैं । राजनीति में संवाद सबसे जरूरी होता है चाहे उससे विवाद ही क्यों न हो मगर जनता से जुड़ने का यह सबसे बेहतर माध्यम है ।
विगत दिनो संपन्न विधानसभा चुनावों में पूरे देश में कॉंग्रेस की भद पिटी , सिर्फ छत्तीसगढ़ में उनकी साख में कुछ इजाफा हुआ । हालांकि सीटों के लिहाज से कोई फायदा नहीं हुआ मगर भाजपा और कॉंग्रेस में वोट प्रतिशत  का अंतर मात्र 0.7 % रहा जिससे कॉंग्रेस को छत्तीसगढ़ में  आगामी लोकसभा के लिए कुछ उम्मीद नजर आने लगी।  इस  बार के आम चुनाव कॉंग्रेस के लिए काफी मुश्किल भरे होंगे इसकी संभावना ज्यादा है । विगत 10 वर्षों से केन्द्र में सत्तारूढ़ कॉंग्रेस से आम जनता की उम्मीदें टूट चुकी हैं और वो एक नए विकल्प की तलाश में है । हालांकि ऐसा कोई निश्चित और सशक्त विकल्प अब तक जनता के सामने नहीं उभरा है । दिल्ली में सरकार बनाने के पश्चात एक बड़े तबके द्वारा आम आदमी पार्टी से भी काफी उम्मीदें की जाने लगी हैं । निश्चित रूप से विकल्पहीनता से जूझते आम जन के पास नए विकल्प को आजमाने की संभावनाएं जरूर बनती हैं। नरेन्द्र मोदी को आगे कर भाजपा ने अपनी चुनौती पेश की है हालांकि आम जन अभी तक इससे इत्तेफाक रखता दिख नहीं रहा है मगर दिल्ली में केजरीवाल सरकार का ग्राफ जिस तेजी से नीचे की ओर जा रहा है उसके चलते बनती उम्मीदों के टूटने का भय होता जा रहा है । यदि कॉंगेस अपनी गिरती साख बचाने में नाकामयाब रही तो इसका फायदा भाजपा को ही मिलेगा ।  देखा जाए तो यह चुनाव भाजपा के लिए भी सबसे निर्णायक कहा जा सकता है । भाजपा ने नरेन्द्र मोदी के रूप में अपना ब्रहमास्त्र चला दिया है । अगर इस बार के आम चुनाव में मोदी को आशातीत सफलता न मिली तो भाजपा एक लम्बे समय के लिए हाशिए पर जा सकती है इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता । वहीं दूसरी ओर राहुल को इस चुनाव में प्रधानमंत्री का दावेदार घोषित न किया जाना कॉंग्रेस की सबसे चतुर रणनीति का परिचायक है । ये सभी जानते हैं कि यदि कॉंग्रेस किसी तौर सरकार बनाने के करीब पहुंच पाई तो निःसंदेह राहुल ही प्रधानमंत्री होंगे ,मगर यदि भाजपा सरकार बनाने के लिए आवश्यक बहुमत के जरा ज्यादा दूर रह जाती है तो अन्य दलों के समर्थन के लिए संभवतः मोदी को बलि का बकरा बनने से नहीं रोका जा सकता ।
   
आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर पूरे देश में कॉंग्रेस के लिए कोई उम्मीद अगर बचती है तो वो सिर्फ बेहतर और सक्षम प्रत्याशी का चयन ही है । राहुल गांधी पूरे देश में कॉंग्रेस के भीतर आंतरिक लोकतंत्र की वकालत करते फिर रहे हैं । साथ ही वे आम आदमी पार्टी का ही फंडा लेकर आम जन से रायशुमारी के भी तमाम हथकंडे अपना रहे हैं जिससे कुछ राहत जरूर मिल सकती है मगर इसे व्यवहार में अमल किया जाना भी जरूरी है । यह एक बेहतर शुरुवात भी कही जा सकती है। एक लम्बे अरसे से पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र पर बहस की बात उठती रही है मगर व्यवहार में यह अब तक संभव नहीं हो सका है । वर्तमान परिदृश्य में अब इसकी सख्त जरूरत महसूस की जाने लगी है । अगर राहुल वास्तव में अपनी पार्टी में ऐसा कर पाते हैं तो निश्चित रूप से यह कॉंग्रेस के लिए संजीवनी की तरह होगी साथ ही अन्य पार्टियों पर भी इसका प्रभाव देखने मिलेगा और भारतीय लोकतंत्र के लिए एक सकारात्मक कदम होगा । 


जीवेश प्रभाकर

No comments:

Post a Comment