Tuesday, November 1, 2016

गोवर्धन पर्वत-जीवेश प्रभाकर

अबके दीपावली में मिली पुरानी डायरी से एक कविता----
सभी मित्रों को दीपावली की शुभकामनाओं के साथ---
गोवर्धन पर्वत-
बारिश मे तान लिया
अपने सर पर छाता
कड़कड़ाती ठंड मे
बचाता रहा अपनी चमड़ी
और गर्मियों मे
अपने घर पर ही लगा लिया कूलर ।
बस इतना ही करता रहा
मौसम दर मौसम साल दर साल साल
और सोच लिया सारी दुनिया चैन से है ।
मैं नही बेघर हुआ बाढ़ मे
न अकडा कड़कड़ाती ठंड मे
और झुलसा भी नही
गर्म लू के थपेड़ों मे ।
मैं रहा सुरक्षित और
अंशतः सफल रहा
बस अपना परिवार
ऊपर उठा पाने मे,
मैंने नही उठाया कभी गोवर्धन पर्वत ।

जीवेश प्रभाकर

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