Sunday, April 5, 2020

गज़ल ( कोरोना के दौर में ) -


लोग भी न जाने क्या क्या याद अब कने लगे हैं
मौत की आहट से देखो पल भर में ही डरने लगे हैं

तान रख्खे थे जिन्होंने ख्वाबों ख्वाहिश के महल
एक ही झटके में देख वो कैसे दरकने लगे हैं

गठरी उम्मीदों की लेकर जहां आए गावों से हुजूम
वो शहर अपने ही मुसलसल बोझ से ढहने लगे हैं

एक बेहतर ज़िदगी का ख्वाब लेकर आए थे जहां
रुसवा होके वो वहां से बदहवास निकलने लगे हैं

बोझ सर पे लेके जो सजडकों पे पैदल दीखते हैं
लोग उनकी बेबसी को अय्याशियां कहने लगे हैं

पांव के छालों से उनके फूटते दरिया से देख
सख्त चट्टानों से भी झरने फूटकर बहने लगे हैं

जिब्बू ये मंज़र बेबसी का और ये खामोश लब
ये सब हमारी नाकामियों की दास्तां कहने लगे हैं

जिब्बू रायपुरिया

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