Thursday, March 27, 2014

विश्व रंगमंच दिवस 27 मार्च

विश्व रंगमंच दिवस 27 मार्च -
जहाँ कहीं भी मानव समाज है कला प्रदर्शन का अदम्य उत्साह स्पष्ट दिखायी देता है | छोटे-छोटे गावों में पेड़ों की छाँव में, वैश्विक महानगरों के उच्च तकनीक से लैस मंचों पर, स्कूलों के प्रेक्षागृहों, खेतों और मंदिरों में ; मलिन बस्तियों में, नगर चौक पर, सामुदायिक केंद्र और शहर के भीतर बने तलघरों में – लोग समूह बनाकर आते हैं – उस अल्पकालिक रंगमंचीय दुनिया को देखने जिसे हम रचते हैं – अपनी मानवीय जटिलताओं, अपनी विविधताओं, श्वासों, हाड़-मांस और जीवित स्वरों से - अपने मर्म और संवेदनशीलता की अभिव्यक्ति के लिए | यादों के साथ रोने और दुखी होने ; हंसने और विचार करने ; सीखने, सोचने और अपनी बात कहने हम इकठ्ठा होते हैं - एक साथ – तकनीकी दक्षता पर विस्मय करने, ईश्वर को ज़मीन पर उतारने | अनुभूतियों, संवेदना और असंगतियों के माध्यम से अपनी सामूहिक चेतना को एक साथ लाने | हम आते हैं जोश और उर्जा से भर जाने – अपनी विविध संस्कृतियों का उत्सव मनाने और उन सीमाओं को तोड़ने जो हमें विभाजित करती हैं | जहाँ कहीं भी मानव समाज है कला प्रदर्शन का अदम्य उत्साह स्पष्ट दिखायी देता है | समाज से प्रस्फुटित यह उत्साह अलग-अलग संस्कृतियों की वेश-भूषा और मुखौटे पहन कर विभिन्न भाषाओं, लय-ताल और भंगिमाओं को एकजुट कर हमारे बीच जगह बनाता है | और इस चिरंतन उत्साह के साथ काम करने वाले हम सभी कलाकार इसे अपने हृदय, विचार और शरीर के माध्यम से अभिव्यक्त करने का दबाव महसूस करते हैं ताकि अपने यथार्थ के दुनियावी और भ्रामक रहस्यमयी पक्षों को उजागर कर सकें | परन्तु, आज के दौर में जब लाखों-करोड़ों लोग जीवन संघर्ष में उलझे हैं, दमनकारी सत्ता और परभक्षी पूंजीवाद झेल रहे हैं, द्वंदों और कठिनाइयों से भाग रहे हैं ; जब खुफ़िया एजेंसियां हमारे एकांत को आक्रांत कर रही हों और हमारेशब्दों को घुसपैठी सरकारें सेंसर करनेमेंजुटी हो; जहाँ जंगल बरबाद कियेजा रहे हों, प्रजातियाँ नष्ट हो रही होंऔर समुद्र मेंज़हर घोला जा रहा हो: हम क्या उद्घाटित करना चाहते हैं? असंतुलित शक्ति की इस दुनिया में जहाँ प्रभुत्ववादी ताकतें हमें यह समझाने में लगी हों कि एक देश, एक नस्ल, एक लिंग, एक यौनिक प्राथमिकता, एक धर्म, एक विचारधारा, एक सांस्कृतिक ढांचा ही सबसे श्रेष्ठ है – ऐसे में कलाओं का सामाजिक मुद्दों से जुड़ना अपरिहार्य है | क्या मंच और रंगभूमि के कलाकार बाज़ार की मांगों के पक्ष में हैं या समाज के बीच जगह बनाने के लिए अपनी शक्तियों को एकत्र कर रहे हैं – लोगों को जोड़ रहे हैं, उन्हें प्रेरित कर रहे हैं, जागरूक बना रहे हैं – उम्मीदों से भरा संसार रचने के लिए जहाँ खुले दिल से आपसी सहयोग संभव हो | ब्रेट बेली ब्रेट बेली एक दक्षिण अफ़्रीकी नाट्य लेखक, डिज़ाईनर, निर्देशक, इंस्टोलेशन मेकर और थर्ड वर्ल्ड बन्फाइट के कला निर्देशक हैं. उन्होंने दक्षिण अफ़्रीका, जिम्बावे, युगांडा, हायती, द डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ़ काँगो, ययु.के. और योरोप के तमन देशों में काम किया है. उनके प्रसिद्द आइकोनोक्लास्टिक नाटक बिग दादा, इपी ज़ोम्बी?, इमम्बो जम्बो और मीडिया एंड ओर्फ़िअस उत्तर औपनिवेशिक विश्व के प्रसार की पड़ताल करते हैं | उनकी पर्फोर्मंसे इंस्टालेशनस में एक्ज़िबिटस ए & बी शामिल है.ब्रेट के नाटकों के प्रदर्शन सम्पूर्ण योरोप, ऑस्ट्रेलिया, और अफ्रीका में हुए हैं. उन्हें बहुत से सम्मान व् पुरस्कार भी मिले हैं जिनमें प्राग क्वाड्रेनियल (2007) की डिज़ाइन हेतु गोल्ड मैडल भी शामिल है |.वो प्राग क्वाड्रेनियल 2011 की ज्यूरी के अध्यक्ष और मार्च 2013 में अंतर्राष्टीय रंगमंच संस्थान द्वारा आयोजित “म्युज़िक थियेटर नाउ’ प्रतियोगिता की ज्यूरी के सदस्य रहे | विश्व कला और संस्कृति सम्मलेन, जोहानेसबर्ग (2009) तथा 2006 – 2009 के दौरान हरारे अंतर्राष्ट्रीय कला महोत्सव की उदघाटन प्रस्तितुयों का निर्देशन किया | 2008 से 2011 तक वो केप टाउन में ,दक्षिण अफ्रीका में आयोजित होने वाले अकेले जन कला महोत्सव ‘ इन्फेक्टिंग द सिटी’ के अध्यक्ष रहे | 
यूनेस्को में अंतरष्ट्रीय रंगमंच दिवस, 2014 का सन्देश - ब्रेट बेली (दक्षिण अफ़्रीकी नाट्य लेखक, निर्देशक, इंस्टोलेशन मेकर और थर्ड वर्ल्ड बनफाइट के कला निर्देशक) --
 translation: Akhilesh Dixit 'Deepu' Circulated worldwide by International Theatre Institute, UNESCO Circulated in India by Indian People's Theatre Association Dhiraj Misra VARANAsi ki wall se

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