Monday, March 3, 2014

नगर निगम के फैसले जनता से धोखा ---जीवेश चौबे




कुछ खबरों ने एक बार फिर नगर निगम की कार्यप्रणाली और इरादों को संदेह के दायरे में ला दिया है । एक यह खबर ये है कि सुभाष स्टेडियम के विस्तार के लिए खाली की गई जमीन पर नगर निगम पेट्रोल पंप खोलने की तैयारी में है। दूसरी यह कि शहर में कचरा उठाने के लिए शुल्क वसूलने की इजाजत दे दी गई है । और तीसरी ये कि नगर निगम की आम सभा हंगामे के कारण स्थगित कर दी गई जिसमें कलाकारों के लिए आडिटोरियम बनाए जाने का प्रस्ताव पारित किया जाना था । एक लम्बे  अरसे से कलाकारों द्वारा ऑडिटोरियम की मांग की जा रही है जिस पर अब जाकर कुछ ठोस निर्णय लिया जाना था मगर वह हंगामे की भेंट चढ़ गया ।

जहां तक ऑडिटोरियम का सवाल है तो छत्तीसगड़ की राजधानी होने के नाते एक सर्वसुविधायुक्त ऑडिटोरियम की आवश्यकता से इंकार नहीं किया जा सकता । सभ्य समाज में कला की जगह जरूरी होती है । दुखद ये है कि हमारे शहर में ऐसे तमाम संगठनो ने कला और संस्कृति के विकास के नाम पर जमीने तो हथियाई मगर उनके व्यवसायिक उपयोग में लगी रहीं । आज शहर में एक भी सर्वसुविधायुक्त ऑडिटोरियम नहीं है और जो एक दो हैं भी वे इतने मंहंगे और तकनीकी रूप से असंगत हैं कि कला बिरादरी उसका उपयोग नहीं कर सकती । हालांकि इस बात पर भी गौर करना जरूरी है कि शहर में रंगकर्म की गतिविधयां काफी धीमी और कम हैं जिसका एक कारण संभवत: ऑडिटोरिटम का न होना भी हो सकता है ।  ऑडिटोरियम होगा तो संभव है शहर में रंगकर्म को भी विस्तार मिलेगा । नगर निगम कलाकारों की इस मांग पर एक लम्बे समय से सहमत तो है मगर कोई ठोस क्रियान्वयन नहीं करता । सिर्फ आश्वासनो के झुनझुने से कलाकारों को  बहलाते रहने से कलकारों में आक्रोश बढ़ता जा रहा है । पिछली आमसभा में कलाकारों की आकांक्षाओं को एक मुकाम मिलने की संभावना थी मगर हंगामे के शोर में तमाम उम्मीदों पर पानी फिर गया ।
इस शहर में लगातार ऐसे मनमाने फैसले ले लिए जाते हैं और हम सब कबूल भी कर लेते हैं । वह जमीन जो खाली कराई गई है और जो जमीने खाली पड़ी हैं  वो पूरे शहर की संपत्ति है न कि किसी दल की बपौती । इन शहरी संपत्तियों पर किसी भी निर्माण का फैसला पूरी जनता की इच्छा के अनुरूप किया जाना चाहिए न कि ऐसे लोगों द्वारा जो चंद महीनो के मेहमान हैं । गौरतलब है कि आगामी दिसंबर माह में नगर निगम के चुनाव होने हैं । जब पहले यह तय किया गया कि खाली कराई गई जमीन पर सुभाष स्टेडियम का विस्तार किया जाएगा और मोतीबाग में ऑडिटोरियम  तो फिर अचानक पेट्रोल पंप का फैसला कैसे लिया गया । इसके पीछे आखिर क्या मंशा है ?
वहीं कचरा उठाने के लिए पहले से मौजूद भारी भरकम नियमित अमले के होते कैसे किसी निजि कंपनी को 30 साल के लिए ठेका दिया जा सकता है । निजिकरण और उदारीकरण के दबाव में आमजन से सिर्फ पैसा वसूलने के उद्देश्य से किसी निजी कंपनी को लाभ देना कहां तक उचत है । सारा शहर आज गंदगी में डूबा हुआ है , सभी जगह कचरे के ढेर लगे हुए हैं और ठेका लेने वाली किवार कंपनी अपने काम में पूरी तरह अक्षम सिध्द हो रही है । हालात ये हैं कि प्रदेश शासन ने  इस कंपनी के भुगतान तक पर रोक लगा दी है । फिर क्या कारण है कि नगर निगम लगातार ऐसी डिफाल्टर कंपनी को सर पर बिठाए हुए है । कुछ समय पहले कंपनी अपने कर्मचारियों को तलख्वाह तक नहीं दे रही थी जिसके कारण पूरे शहर में अनियमितता और गंदगी फैली हुई थी ।
विगत वर्षो में नगर निगम द्वारा चुने गए नुमाइंदों और शासन द्वारा बिठाए गए आटुक्त अपनी मनमानी करते हुए ऐसे ही फैसलों के जरिए आम जनता को मुश्किल में तो डाल ही रहे हैं साथ ही जनता को गुमराह भी कर रहे हैं । इस तरह नगरीय संपत्ति िकी बंदरबांट जनता के साथ धोखा है । सबसे दुखद या कहें अनैतिक बात यह है कि महज पांच साल के लिए चुने गए लोग बिना जनता की राय लिए कैसे दीर्घकालिक  फैसले ले सकते हैं। दूसरा सवाल ये है कि आखिर चुने हुए नुमाइंदों और शासन द्वारा बिठाए गए आयुक्त में कौन शक्तिशाली है । अगर सारे निर्णय शासन द्वारा नियुक्त आयुक्त या आधकारी को ही लेने हैं तो फिर नगरीय संकायों के चुनाव का क्या मतलब?
     आज बदलते दौर में जब लगातार शासन में जनभागीदारी की बातें की जा रही हैं तब जनता से जुड़े मुद्दों पर और दीर्घकालिक व स्थाई योजनाओं पर बिना जनता की राय जाने इस तरह के निर्णय लिया जाना पूरी तरह गलत है । इस तरह के दीर्घकालिक और स्थाई योजनाओं पर पारदर्शिता के साथ एक जनसमिति का गठन किया जाना चाहिए । इस समिति में समाज के सभी वर्गों के नुमाइंदो की भागेदारी हो जो विशेषज्ञों के साथ मिलकर आम जनता की राय के मुताबिक ठोस योजना बनाकर शासन को दें जिस पर शासन वित्तीय मदद देकर अमल करे ।  


No comments:

Post a Comment