Wednesday, September 6, 2017

प्रखर आलोचक वरिष्ठ पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या लोकतांत्रिक मूल्यों पर फासीवादी हमला है

      वरिष्ठ पत्रकार गौरी शंकर लंकेश की हत्या अभिव्यक्ति की आज़ादी पर एक बर्बर हमले के साथ ही लोकतांत्रिक आवाज़ को दबाने के लिए फासीवादी ताकतों द्वारा की गई  कायराना हत्या है । गौरी शंकर लंकेश ने अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया । कर्नाटक में सांप्रदायिकता व कट्टरपंथ  के खिलाफ अपने सख्त रुख के लिए लंकेश की व्यापक पहचान रही है।
गौरी लंकेश 'लंकेश पत्रिके' नाम के साप्ताहिक अखबार की संपादक थीं, जिसका साप्ताहिक वितरण 70 हजार था। यह अखबार उनके पिता पाल्याड़ा लंकेश ने शुरू किया था। पाल्याड़ा लंकेश फिल्ममेकर, कवि और पत्रकार थे। अखबार की ख्याति खोजी रपट प्रकाशित करने में थी।  इसके साथ ही वह कई टीवी चैनलों पर पैनेलिस्ट भी थीं। वह सामाजिकराजनीतिक सवालों को लेकर एक कर्मठ कार्यकर्ता की तरह सक्रिय रहती थीं। गौरी लंकेश नौ घंटे पहले तक ट्वीटर पर सक्रिय थीं और उन्होंने रोहिंग्या मुसलमानों की असुरक्षा और उनके द्वारा झेली जा रही हिंसा के संदर्भ में छपी खबर को आखिरी ट्वीट किया था।
इसके पूर्व बेंगलुरु में ही हिंदुत्वादियों ने साहित्य अकादमी विजेता लेखक एम एम कलबूर्गी की भी हत्या कर दी थी। इसी प्रकार पानसारे व दाभोलकर की भी निर्मम हत्या कर दी गई थी ।  'पहले दाभोलकर, कलबुर्गी, फिर पानसरे और अब गौरी लंकेश, कट्टरपंथी व फासिस्ट ताकतों द्वारा एक एक करके स्वतंत्र विचारों वाले तर्कशील लोगों की हत्या कर दी जा रही है । यह स्पष्ट तौर पर नजर आ रहा है कि  बहुत ही सोची समझी साजिश के तहत ऐसे तर्कशील लोगों को फासिस्ट ताकतों द्वारा निशाना बनाया जा रहा है मगर राज्य व केन्द्र सरकार कुछ ठोस कार्यवाही नहीं कर पा रही है ।
वरिष्ठ पत्रकार लंकेश के भाई इंद्रजीत ने मांग की है कि लंकेश की हत्या जांच सीबीआई से होनी चाहिए, क्योंकि राज्य सरकार की जांच में दोषियों को सजा नहीं मिल पाएगी। उन्होंने सीबीआई की जांच इसलिए भी मांगी क्योंकि उन पर कई मानहानी के मुकदमें हैं जो माफियाओं और नेताओं ने किए हैं।
यह माना जाना चाहिए कि  दाभोलकर , कुलबुर्गी , पनसारे की हत्याओं की यह अगली कड़ी है, केन्द्र और राज्य सरकारें लेखकों, बुद्धिजीवियों की ज़ुबांन बंद करने की चाह में लगातार हो रही हत्याओं पर ख़मोश हैं । आज तक हुई ऐसी हत्याओं पर कोई कारगर कार्यवाही अथवा ठोस कदम नही उठाये गए हैं।लोकतांत्रिक समाज व राष्ट्र मे वैचारिक मत भिन्नता को सम्मानजनक स्थान मिलने की बजाय दमनात्मक रवैया अपनाकर बर्बर हत्या की हम निंदा करते हैं । लोकतांत्रिक मूल्यों को मानने वाले सभी प्रगतिशील व तर्कशील लोगों से इस हत्या एवं इसके पूर्व हुई सभी हत्याओं के खिलाफ एकजुट होकर संघर्ष करने हेतु आगे आने की अपील भी करते हैं ।


जीवेश प्रभाकर

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