गांधी की बचाने
की ज़िम्मेदारी नई नस्ल पर है : गौहर रज़ा

गांधी, स्वतंत्रता संग्राम और आजाद भारत की कल्पना विषय पर अपने
विचारोतजक उदबोधन में गौहर रज़ा ने कहा कि आज हम इतिहास पर नजर डालें तो पाएंगे कि
अशोक, बिस्मार्क, सिकंदर, नेपोलियन , अकबर या
हिटलर इन सभी की जो भी भूमिका रही समाज ने उन्हें उसी रूप में स्वीकार किया न कि
किसी बदलाव के साथ. गांधी जी ने बराबरी की बात की समाज के सभी वर्गों को समान
अधिकार देने की बात की लेकिन आज के समाज में हम बराबरी की बात करते तो हैं लेकिन
बराबरी को स्वीकार नहीं कर पाते,
उन्होंने कहा
गांधी जी की बुनियादी दृष्टि में राजनीति
व समाज था न कि
आध्यात्म, उन पर हिंदू, इस्लाम, जैन,
बौद्ध आदि सभी
धर्मों के दर्शन का प्रभाव था. गरीब हो या अमीर सबके लिए उनके वचन एक जैसे ही होते
थे.तमाम लोग उन्हें समझौता परस्त कह सकते हैं लेकिन मैं इसे बीच का रास्ता निकालने
वाले रणनीतिकार के रूप में देखता हूं, ताकि किसी प्रकार के वैमनस्य को टाला जा
सके.वैज्ञानिक गौहर रजा ने कहा कि हम बड़ी- बड़ी बातें बोलते हैं लेकिन
दलितों और निचले तबके के लोगों और महिलाओं के प्रति हमारा क्या नजरिया है ये सोचने
का विषय है. हमारा स्वतंत्रता आंदोलन इन सभी ढांचों को तोडने का प्रयास था, उन्होंने कहा कि आज गांधी को बचाने की जिम्मेदारी हमारी अगली
नस्ल यानि आप युवाओं की है. गांधी के ख्वाबों के हिंदुस्तान में सब बराबर हैं
जिन्हें उनके ख्वाबों का हिंदुस्तान पसंद नहीं वही गांधी के विचारों पर हमला कर
उन्हें नए रूप में पेश करना चाहते हैं.
इस अवसर पर वरिष्ठ कवि असद जैदी ने गांधी जी की नई तालीम व भाषा पर उनके विचार विषय पर कहा कि गांधी मजबूरी नहीं
मजबूरों और मजदूरों के नायक थे,समाज के सबसे निचले तबके के मजबूर, मजलूम लोग गांधी की चिंताओं में प्रमुख
थे. उन्होंने कहा कि गांधी जी ने दलितों वंचितों
किसानों की लड़ाई का बीड़ा उठाया, वे समाज
के उच्च वर्गों के हितों के लिए नहीं बल्कि अंतिम व्यक्ति के लिए लड़े,उन्हें किसी ने राष्ट्रपिता की पदवी प्रदान नहीं की बल्कि
उन्होंने इसे कमाया,ये किसी सरकार की देन नहीं थी बल्कि
राष्ट्रपिता के तौर पर समाज के हर वर्ग में उनकी स्वीकार्यता रही. बापू को राष्ट्रपिता की पदवी दी नहीं
गई उन्होंने इसे कमाया ।

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