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Sunday, February 17, 2013
भाषाई दमन के इलाके--अनिल चमड़िया
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भाषाई दमन के इलाके--अनिल चमड़िया
जिस समय टेलीविजन का विस्तार हो रहा था उस समय टेलीविजन को जानने-समझने और उस पर बातचीत की एक भाषा तैयार हो सकती थी, अब भी हो सकती है, बशर्ते उसके प्रयास हों। लेकिन बौद्धिक तौर पर यह स्वीकृति बन गई है कि या तो अंग्रेजी में जो आएगा उसे चला लिया जाएगा या उसका शाब्दिक अनुवाद रख दिया जाएगा। पंजाबी विश्वविद्यालय में सामाजिक मीडिया के सामाजिक संदर्भ विषय पर एक बातचीत का आयोजन था। उसमें एक भी पर्चा हिंदी और पंजाबी में नहीं आया।
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