जहां सवाल लोकतांत्रिक प्रक्रिया
की पारदर्शिता और विश्वसनीयता को बढ़ाने का हो, वहां संवैधानिक संस्थाओं के बीच किसी तरह का अहं का
टकराव नहीं होना चाहिए । लोकतंत्र में जनता ही सर्वोपरी है । जनता का, जनता के लिए
जनता के द्वारा सिद्धांत तभी जीवित रह सकते हैं जब तक तंत्र पर लोक की आस्था और
विश्वास कायम है । लोकतांत्रिक मूल्यों और लोकतांत्रिक संस्थानो में विश्वासनीयता
ही लोकतंत्र की जान है । रजनैतिक दलों से कहीं ज्यादा जनता में तंत्र पर विश्वास कायम
रहना महत्वपूर्ण है । यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि एक बार फिर वीवीपैट मिलान को लेकर 21विपक्षी दलों ने सुप्रीम
कोर्ट के समक्ष समीक्षा याचिका दायर की है । इस याचिका में इन पार्टियों ने अदालत
से मांग की है कि वह चुनाव आयोग को ईवीएम से वीवीपीएटी के 50 फीसदी मिलान करने का
निर्देश दे।
तीन चरण के मतदान पूरे हो चुके हैं तीनो चरण
के मतदान के दौरान कई प्रदेशों में मशीनों की खराबी और दूसरी तरह की शिकायतें
सामने आई हैं । ऐसे में देश
में कई पार्टियों ने एक बार फिर चुनावों में ईवीएम से छेड़छाड़ का मुद्दा उठाया है
। ईवीएम से छेड़छाड़ का मुद्दा खास है क्योंकि ईवीएम से छेड़छाड़ की संभावना ने आम
लोगों में भी डर बना दिया है हालांकि ईवीएम के समर्थन में चुनाव आयोग द्वारा कहा जाता है कि
ईवीएम में छेड़छाड़ संभव नहीं है मगर आम जन में संशय बना हुआ है ।
विगत 70 वर्षों से देश में आम जनता की
उल्लेखनीय सहभागिता और जिम्मेदारी के चलते ही
लोकतंत्र लगातार विकसित व मजबूत हुआ है। जब भी तंत्र पर कोई खतरा हुआ है
लोक ने अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई है । इन 70 बरसों में देश में लोकतांत्रिक
प्रणाली को मजबूत करने कई उपाय किए गए । इसमें सबसे महत्वपूर्ण है ईवीएम मशीनों का
इस्तेमाल । नई सदी में तकनीकी के विस्तार के साथ ही इस प्रणाली
को और मजबूती मिली मगर इसके साथ कुछ दुष्परिणामों की आशंका भी बलवती हुई है।
ईवीएम का पहली
बार इस्तेमाल 1982में केरल के परूर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र के 50 मतदान केन्द्रों
पर हुआ। 1983 के बाद इन मशीनों का इस्तेमाल इसलिए नहीं किया गया कि चुनाव में
वोटिंग मशीनों के इस्तेमाल को वैधानिक रुप दिये जाने के लिए उच्चतम न्यायालय का
आदेश जारी हुआ था। 1988 में संसद
ने इस कानून में संशोधन किया तथा जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951में नई धारा जोड़ी गई
जो आयोग को वोटिंग मशीनों के इस्तेमाल का अधिकार देती है। संशोधित प्रावधान 15मार्च
1989 से प्रभावी हुआ। केन्द्र सरकार द्वारा 1990 में अनेक मान्यता प्राप्त
राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय दलों के प्रतिनिधियों वाली चुनाव सुधार समिति बनाई गई और सरकार
ने ईवीएम के इस्तेमाल संबंधी विषय विचार के लिए चुनाव सुधार समिति को भेजा। 1992
को सरकार के विधि तथा न्याय मंत्रालय द्वारा चुनाव कराने संबंधी कानूनों, 1961 में आवश्यक
संशोधन की अधिसूचना जारी की गई। नवम्बर, 1998 के बाद से आम चुनाव एवं उप-चुनावों में
प्रत्येक संसदीय तथा विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में ईवीएम का इस्तेमाल विधिवत प्रारंभ
किया गया और 2004 के आम चुनाव में देश के सभी मतदान केन्द्रों पर ईवीएम के
इस्तेमाल के साथ भारत ई-लोकतंत्र में परिवर्तित हो गया। तब से सभी चुनावों में
ईवीएम का इस्तेमाल किया जा रहा है। मगर मतों के सत्यापन की कोई व्यवस्था नहीं होने
से एक अविश्वास भी कहीं पनपता रहा ।
2013में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद वोटर वेरीफाइड ऑडिट ट्रेल (वीवीपैट) कागजी सत्यापन की व्यवस्था की गई । उस समय भी चुनाव आयोग वीवीपैट की शुरुआत करने का विरोध कर रहा था । वीवीपैट मशीन ईवीएम से जुड़ी होती है । जब मतदाता ईवीएम पर बटन दबाता है तब वीवीपैट मशीन से एक पर्ची निकलती है जिस पर उस पार्टी का चुनाव निशान और उम्मीदवार का नाम होता है जिसे मतदाता ने वोट दिया होता है । मतदाता को सात सेकेंड तक दिखने के बाद यह वीवीपैट मशीन में एक बक्से में गिर जाती है । इस व्यवस्था से कुछ तसल्ली हुई मगर अब भी इसे मशीनी गणना से मिलान करने कोई संतोषजनक प्रावधान नहीं किया गया। इसे लेकर ही भाजपा को छोड़कर अन्य राजनैतिक दल उद्वेलित हैं और एक विश्वसनीय व्यवस्था की मांग कर रहे हैं। यह पहली बार नहीं है कि भारत में ईवीएम पर सवाल उठ रहे हों । इसके पहले सत्ताधारी बीजेपी के ही नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने साल 2009 में ईवीएम पर सवाल उठाया था, हालांकि सुब्रमण्यम स्वामी तब बीजेपी में नहीं थे और देश में कांग्रेस की सरकार थी । मगर आज सत्ता में आने पर भाजपा द्वारा मतदान और मतगणना की प्रक्रिया को ज्यादा पारदर्शी बनाने के इस प्रस्ताव का समर्थन न करना हैरत में डालनेवाला है ।
गौरतलब है कि पूर्व में 21 राजनीतिक दलों
द्वारा ईवीएम की 50 फीसद वीवीपैट पर्चियों से मिलान संबंधी याचिका पर सुप्रीम
कोर्ट ने प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में औचक रूप से पांच वीवीपैट का ईवीएम से
मिलान किए जाने का आदेश दिया था। इसके पूर्व तक प्रत्येक विधान सभा में सिर्फ एक ईवीएम की वीवीपैट पर्चियों का औचक
मिलान होता रहा । विपक्षी दलों द्वारा दायर याचिका के जवाब में चुनाव आयोग ने दलील
दी थी कि इससे चुनाव के नजीजों में 5 से 6 दिन लगेंगे । 21 विपक्षी पार्टियों के
नेताओं ने कहा कि चुनाव के नतीजों की घोषणा में 5 से 6 दिनों की देर कोई ‘गंभीर विलंब’ नहीं है, बशर्ते कि यह चुनाव प्रक्रिया की पवित्रता व पारदर्शिता
सुनिश्चित करती हो। लोक विश्वास के नजरिए से भी यह सही है कि जब सुरक्षा के मद्दे
नज़र चुनाव प्रक्रिया में दो से तीन माह लगाया जा सकता है तो देश की भावी सरकार को
पांच साल दिए जाने के पूर्व लोकतांत्रिक पारदर्शिता सुनिश्चित करने 5-6 दिन का
इंतजार क्यों नहीं किया जा सकता ।
विश्व में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन की
टेक्नोलॉजी कई दशकों से मौजूद है लेकिन दुनिया के ज्यादातर
लोकतांत्रिक देश अब भी मत पत्रों का ही इस्तेमाल करते हैं । इन देशों में ब्रिटेन, अमेरिका से लेकर फ्रांस और जर्मनी तक शामिल है । मौजूदा समय में भारत के
अलावा सिर्फ नामीबिया, अरमेनिया, भूटान, ऑस्ट्रेलिया, बुल्गारिया, एस्टोनिया, स्वीट्जरलैंड, इटली, कैनेडा, मैक्सिको, अर्जेंटीना, ब्राजील आदि कुछ ही देशों में
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन से मतदान होता है । लोकतंत्र
की विश्वसनीयता के चलते जर्मनी, नीदरलैंड, आयरलैंड और अमेरिका जैसे कई विकसित
लोकतांत्रिक राष्ट्र या तो कागजी मत पत्रों की तरफ लौट गए हैं, या उसकी फिर से शुरुआत करने की प्रक्रिया में हैं,जबकि उनके पास सर्वोत्तम
तकनीक उपलब्ध है। कई अन्य देशों में भी इसकी विश्वसनीयता को लेकर बहस जारी
है।
आज भारत में भी यह बहस उठी है जो लोकतंत्र की बेहतरी के
लिए अच्छे संकेत हैं। लोकतांत्रिक प्रक्रिया इतनी पारदर्शी होना चाहिए कि संदेह की
सुई बराबर गुंजाइश भी न रहे। तंत्र की मजबूती लोक की आस्था और विश्वास पर ही
निर्भर है । मतदाता का यह भरोसा कायम रहना चाहिए कि उसके ही मत से सरकारें बनती और
बिगड़ती हैं मतदाता का यह भरोसा ही लोकतंत्र की बेहतरी के लिए न सिर्फ जरूरी बल्कि
बेहद महत्वपूर्ण भी है और यही लोकतंत्र का सारतत्व है । चुनाव आयोग को निश्चित ही
पारदर्शिता सुनिश्चित करने मौजूदा व्यवस्था की तुलना में ज्यादा बड़े सैंपल के
वीवीपैट सत्यापन की मांग को स्वीकार करना चाहिए । जैसा कि मुख्य न्यायाधीश ने
पूर्व में कहा, ‘कोई भी संस्था, चाहे वह कितनी ही ऊंची
क्यों न हो, उसे अपने में सुधार के लिए तैयार रहना चाहिए ।’
चुनाव आयोग
को पारदर्शिता के हक़ में कदम में उठाते हुए मौजूदा व्यवस्था की तुलना में बूथों
के ज्यादा बड़े सैंपल के वीवीपैट सत्यापन की मांग को स्वीकारना चाहिए । चुनाव आयोग का यह निर्णय लोगों की नजरों में उसकी विश्वसनीयता को बढ़ाएगा।
jeeveshprabhakar@gmail.com
(देशबन्धु 26 अप्रैल2019)
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