इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी एक नई रणनीति के तहत बहुलतावाद
को दरकिनार कर बहुसंख्यक ध्रवीकरण को प्राथमिकता के साथ विमर्श के केन्द्र में ला रही
है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के स्टार प्रचारक कहे जाने वाले मुख्यमंत्री
योगी आदित्यनाथ साफ तौर पर अपने प्रचार को बहुसंख्यक बनाम अल्पसंख्यक ध्रुवीकरण पर
ले जाते हुए दिख रहे हैं । यह संसदीय लोकतंत्र के लिए एक ख़तरनाक संकेत है । बहुलता ही भारतीय लोकतंत्र की जान है । धर्म, जाति,भाषा और संस्कृति की विविधता से भरे
भारत जैसे देश में संविधान बनाते समय तात्कालीन नेताओं ने बहुत सोच समझकर संविधान सभा
के माध्यम से देश में संसदीय लोकतंत्र की स्थापना की थी, ताकि
किसी एक धर्म , संप्रदाय या वर्ग का या कहें बहुसंख्यक समुदाय
के नाम पर किसी का बोलबाला या एकाधिकार न हो, सरकार बनाने और देश के विकास में सभी को बराबरी का प्रतिनिधित्व मिले । उस समय स्वतंत्रता आंदोलन के
मूल्यों से ओत-प्रोत भारतीय समाज ने बहुसंख्यक 'हिंदू राष्ट्र' की बात करने वालों को दरकिनार कर दिया था । एक लम्बे अरसे तक या कहें आजादी
के आंदोलन की गवाह उस पिछली पीढ़ी तक तो ये धारणा लगभग बनी रही मगर धीरे धीरे धनबल
बाहुबल के बढ़ते प्रभाव के चलते सत्ताप्रधान
राजनीति का बोलबाला होता गया और सिद्धांत व नैतिकता हाशिए पर चली गईं । सर्वजन सुखाय सर्वजन हिताय
की भावना कागजों में सिमटकर रह गई ।
विगत कुछ दशकों के दौरान देश में लोकतंत्र की बुनियाद
बहुलता की अवधारणा को दरकिनार कर कुछ दलों ने बहुसंख्यक ध्रुवीकरण को बढावा देकर सत्ता
हासिल करने की राह पकडी । ध्रुवीकरण के लिए एक
घृणा के प्रतीक की आवश्यकता होती है । एक आख्यान गढ़ा जाता है । 90 के दशक में बाबरी मस्जिद को इसका प्रतीक बनाया गया,
बहुसंख्यक हिन्दू आबादी की उपेक्षा और अल्पसंख्यक मुस्लिम तुष्टीकरण
का आख्यान गढ़ा गया । बहुसंख्यक धार्मिक भावनाओं को भड़काकर बाबरी मस्जिद बनाम राम
मंदिर के आख्यान में सांप्रदायिकता का ज़हर इस तरह घोल दिया गया जिसकी परिणीति अंततः
बाबरी मस्जिद के विध्वंस के रूप में हुई । सांप्रदायिकता के इस आख्यान के चलते कॉंग्रेस को बहुत नुकसान हुआ क्योंकि संगठनात्मक रूप से कमजोर
कॉंग्रेस भाजपा के इस बहुसंख्यक ध्रवीकरण का कोई जवाब दे पाने में सफल नहीं हो सकी
और धीरे धीरे हिन्दी प्रदेशों में कॉंग्रेस
की पकड़ कमजोर होती चली गई जिसका खामियाजा आज तक भुगतना पड़ रहा है ।
बहुसंख्यक
अस्मिता के पुनर्रोत्थान के नाम पर गढ़े गए आख्यान का हिंदी प्रदेशों के एक बड़े भूभाग
की जनता में असर तो हुआ
मगर भाजपा उस दौर में देश के बहुसंख्यक
आम मतदाता को सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के जरिए इतना प्रभावित कर पाने में नाकाम रही
। फिर गुजरात बहुसंख्यक राजनीति की प्रयोगशाला बना और 2014 के पिछले लोकसभा चुनाव में
इसका विस्तार अखिल भारतीय स्तर पर देखा गया जिसके चलते भाजपा ने पूर्ण बहुमत के साथ
सत्ता हासिल कर इस अवधारणा को और बल प्रदान किया । इस सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के
गढ़े गए आख्यान के चलते ही भाजपा बहुसंख्यक तबके में अपना एक स्थायी वोट बैंक बनाने
में कामयाब रही।
भाजपा
बहुसंख्यक ध्रवीकरण के जरिए संगठित इस बहुत बड़े वोट बैंक को यूं ही हाथ से नहीं गंवाना
चाहती और इस बार भी इसी बहुसंख्यक ध्रुवीकरण
के सहारे सत्ता हासिल करना चाहती है । समस्या ये है कि पांच वर्ष के शासन के बाद आज
भाजपा के पास विकास और रोज़गार के नाम पर ज़्यादा कुछ बताने लायक नही है । मुख्य रूप से यही वजह है कि आज भाजपा को एक बार
फिर बहुसंख्यक ध्रुवीकरण को ही अपना औजार बनाना पड़ रहा है । बाबरी मस्जिद राम मंदिर
आख्यान को वर्षों से भुनाया जाता रहा है मगर राम मंदिर अब तक नहीं बनाया गया, जिससे अब सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के नाम पर संगठित
एक बड़ा तबका भाजपा से छिटक रहा है । हालांकि आज भी भाजपा ने राम मंदिर का मुद्दा अपने
संकल्प पत्र में जिंदा रखा है । बहुसंख्यक ध्रवीकरण से संगठित वोट बैंक को बचाने व भुनाने के लिए अब राष्ट्रवाद के नाम पर
नया आख्यान गढ़ा जा रहा है जो सांप्रदायिक ध्रवीकरण का ही नया रूप है । अब पाकिस्तान
के नाम पर नया खलनायक गढ़ा गया है जिसके सहारे
राष्ट्रवाद और 'आतंकवाद' के नाम पर सीधे अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय को
निशाना बनाया जा रहा है । भाजपा अपनी इस रणनीति पर बड़े ही सुनियोजित ढंग से काम कर
रही है । इसी के चलते अचानक महबूबा सरकार से समर्थन वापस लिया गया ,गाय गोबर के नाम पर मुसलमानों को निशाना बनाया गया और फिर सर्जिकल स्ट्राइक
व पुलवामा जैसे आख्यान गढ़े गए । इन आख्यानो की आड़ में प्रमुख मुद्दे विमर्श से गायब
हो गए और राष्ट्रवाद को बहस के केन्द्र में ला दिया गया । मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ
ने तो सहारनपुर में चुनाव प्रचार करते हुए कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार को पाकिस्तानी
चरमपंथी मसूद अज़हर का 'दामाद' तक कह डाला जो इसी बहुसंख्यक ध्रुवीकरण की रणनीति का हिस्सा
है । दूसरी ओर अनेक सभाओं में प्रधानमंत्री व भाजपा अध्यक्ष अमित शाह सर्जिकल स्ट्राइक और पुलवामा
हमले को केन्द्र में रखकर राष्ट्रीय सुरक्षा
व राष्ट्रवाद के नाम पर ध्रुवीकरण की कोशिश कर रहे हैं साथ ही भी बहुसंख्यकों के ध्रुवीकरण
के तमाम उपकरण व उपक्रम पर लगातार जोर दे रहे हैं ।
राजनैतिक स्तर पर की जा रही
कोशिशों के साथ साथ भाजपा मीडिया के सहारे भी अपनी रणनीति को जनता तक पहुंचाने में
कोई कसर नहीं छोड़ रही है । कॉंग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के केरल की वायनाड सीट से
चुनाव लड़ने पर पत्रकार एम.जे. अकबर ने अपने लेख में खुलकर कहा,
"ये इतिहास में पहली बार होगा, जब कोई कांग्रेस
अध्यक्ष जीत के लिए मुस्लिम लीग पर निर्भर होगा. ज़रा इसके सम्भावित असर के बारे में
विचार करें ।" इस तरह की टिप्पणियां बहुसंख्यक ध्रुवीकरण की एक सोची समझी रणनीति
के तहत ही की जा रही हैं । हिन्दी पट्टी के बड़े राज्य उत्तर प्रदेश और बिहार इस चुनाव
में भाजपा के साथ साथ तमाम विपक्षी दलों के लिए भी अहम हो गए हैं । बहुसंख्यक ध्रवीकरण
के लिए पूरी ताकत भी इन्हीं प्रदेशों में झोंकी जा रही है । भाजपा की इस रणनीति के
जवाब में आज भी कॉंग्रेस के पास कोई ठोस विकल्प या पुख्ता रणनीति नहीं है । इस चुनाव
में हालांकि कॉंग्रेस सॉफ्ट हिन्दुत्व की राह
अपना रही है जो बहुसंख्यक समुदाय के भाजपा विरोधी तबके को कुछ हद तक संतुष्ट कर सकता
है मगर इसके अपने खतरे भी हैं । बहुसंख्यक ध्रुवीकरण के खतरों के विरुद्ध तमाम विपक्षी
दल भी चिंता जता रहे हैं मगर अपने अपने दलगत हितों के चलते एकजुट नहीं हो पा रहे हैं
। इन परिस्थितियों में 2019 के चुनाव देश के संसदीय लोकतंत्र
के लिए काफी अहम साबित होंगे और इसमें मतदाताओं की ज़िम्मेदारी और बढ़ जाती है ।
(देशबन्धु 19 अप्रैल 2019)
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